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मन बदलती कठपुतली को याद करने का समय

 21 मार्च विश्व कठपुलती दिवस पर विशेष मन बदलती कठपुतली को याद करने का समय प्रो. मनोज कुमार डोर में बंधी कठपुतली इशारों पर कभी नाचती, कभी गुस्सा करती और कभी खिलखिलाकर हमें सम्मोहित करती..यह यादें आज भी अनेक लोगों के जेहन में तरोताजा होंगी. कुछ यादें ऐसी होती है जो बचपन से लेकर उम्रदराज होने तक जिंदा रहती हैं और इसमें कठपुतली को दर्ज कर सकते हैं. कठपुतली उस समय हमारे साथ होती थी जब हमारे पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं होता था. जेब में इतने पैसे भी नहीं होते थे कि शहरी बाबूओं की तरह थियेटर में जाकर मजे ले सकें. तब आप और हम मां और बापू के साथ कठपुतली नाच देखने चले जाते थे. समय बदला और कल तक मनोरंजन करती कठपुतली अब जनजागरूकता का अलख जगाने निकल पड़ी. सामाजिक रूढिय़ों के खिलाफ लोगों को चेताती तो समाज को संदेश देती कि अब हमें बदलना है. बदलाव की इस बयार में कठपुतली ने समाज को तो बदला और खुद भी बदल गई. नयी पीढ़ी को कठपुतली कला के बारे में बहुत कुछ नहीं मालूम होगा क्योंकि मोबाइल फोन पर थिरकती अंगुलियां नयी पीढ़ी को कठपुतली से दूर कर दिया है. हालांकि अभी भी कठपुतली का प्रभाव है लेकिन उसकी सिसकी स...
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‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं अनुसंधान की दृष्टि’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

 शोध पत्रिका ‘समागम’ रजत जयंती वर्ष  में ‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं अनुसंधान की दृष्टि’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी   भोपाल. शोध एवं संदर्भ की मासिक पत्रिका ‘समागम’ का प्रकाशन के 25वें वर्ष में प्रवेश कर जाना एक सुखद अनुभूति है. वर्ष 2000 में ‘समागम’ का प्रकाशन आरंभ हुआ था और आहिस्ता-आहिस्ता अपने सीमित संसाधनों में यह सफर तय किया.मीडिया, हिन्दी साहित्य एवं सामाजिक सरोकार पर केन्द्रित ‘समागम’ ने उन विषयों को चुना जिन्हें आमतौर पर स्थान नहीं मिलता है. ‘समागम’ के संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर मनोज कुमार ने कहा कि यह हमारे लिए खास बात यह है कि देशभर के शिक्षाविद्, शोधार्थी एवं मीडिया के ख्यातनाम लोग जुड़े हुए हैं. सुपरिचित साहित्यकार बालकवि बैरागी, डॉ. विकास दवे, डॉ. विजय बहादुर सिंह, डॉ. सोनाली नरगुंदे, एवं डॉ. कमलकिशोर गोयनका का समय-समय पर मार्गदर्शन मिलता रहा है. ‘समागम’ की शक्ति इस बात में है कि सुधिजन समय-समय पर गलतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करते रहे हैं.    ‘समागम’ केवल प्रकाशन तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में अपनी सशक्त ...

न्यायप्रिय और शौर्य की प्रतिमूर्ति महाराज विक्रमादित्य

विक्रमोत्सव-2025 के अवसर पर विशेष लेख न्यायप्रिय और शौर्य की प्रतिमूर्ति महाराज विक्रमादित्य मनोज कुमार भारतवर्ष का इतिहास अनेक न्यायप्रिय और अदम्य साहस दिखाने वाले शासकों से पुष्पित-पल्लवित है। दुर्भाग्य से ऐसे शासकों के प्रति हमारी नवागत पीढ़ी अनजान सी है या उन्हें आधी-अधूरी जानकारी दी गई। मालवा के महाराज विक्रमादित्य से भला कौन परिचित नहीं है? लेकिन नवागत पीढ़ी को यह नहीं मालूम कि विक्रमादित्य के शौर्य भारत के अलावा आसपास के देशों में भी रहा है। विक्रमादित्य पर विपुल साहित्य लिखा गया। महाराज विक्रमादित्य ने किस तरह विक्रम संवत की स्थापना की। विक्रम सम्वत् का प्रवर्तन विक्रमादित्य द्वारा उज्जैन से किया गया। उज्जैन परम्परा से ही काल गणना का एक प्रमुख केंद्र माना जाता रहा और इसीलिए अरब देशों में भी उज्जैन को अजिन कहा जाता रहा। सभी ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथों में उज्जैन को मानक माना गया है। आज जो वैश्विक समय के लिए ग्रीनविच की स्थिति है, वह ज्योतिष के सिद्धांत काल में और उसके बाद सैंकड़ों वर्षों तक उज्जैन की रही। यह भी निर्विवाद है कि ज्योतिर्विज्ञान उज्जैन से यूनान और एलेक्जेंड्रिया पहुँच...

25 saal ka safar

 

देसी रंग में रंगा होगा ग्लोबल इनवेस्टर्स समि

  मनोज कुमार ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट इस बार देसी रंग में रंगा होगा. दुनिया भर से आए उद्योगपतियों के लिए भी एक नया अनुभव होगा. विदेशी मेहमानों को मध्यप्रदेश की संस्कृति, कला एवं खान-पान से परिचय कराया जाएगा. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अथक प्रयासों के चलते और बार बार आयोजन की समीक्षा कर जीआइएस को अविस्मरणीय बनाने की कोशिश रंग दिखाने लगी है. इसके पहले भी अनेक जीआइएस हुए लेकिन सबका डेस्टिनेशन इंदौर हुआ करता था. यह माना जाता है कि इंदौर मध्यप्रदेश का मिनी बाम्बे होने के साथ उद्योग-व्यापारकी नगरी है लेकिन इस बार मोहन सरकार ने इंदौर के बजाय जीआइएस के लिए राजधानी भोपाल को नया डेस्टिनेशन बनाया है. अतिथियों के ठहरने और आवागमन की विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं. कोलार क्षेत्र में अतिथियों के रूकने के लिए विशेष इंतजाम किया गया है और इस बात का ध्यान रखा गया है कि वे प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकें. प्रदेश के लोक कलाकारों की प्रतिभा से अवगत कराने के लिए उनसे लोक चित्र बनवाये गए हैं जो बरबस ही मोह लेते हैं. एक जिला, एक उत्पाद से भी जहां अतिथियों को अवगत कराया जाएगा वहीं खान-पान में मध्यप्रदेश की ख...