अरे ये क्या हो गया?
रिपोर्टर
मध्यप्रदेश के प्रभावशाली आइएएस मनोज श्रीवास्तव को जब संस्कृति सचिव के पद से मुक्त किया गया तो गूंज उठी कि मुख्यमंत्री और उनके बीच थोड़ी दूरी बन गई है और जल्द ही वे आयुक्त जनसम्पर्क के पद से भी मुक्त कर दिये जाएंगे। कयासों का दौर अभी शुरू ही हुआ था कि मुख्यमंत्री ने अचानक एलान कर दिया कि प्रदेश में भूमि घोटाले की जांच आइएएस मनोज श्रीवास्तव करेंगे। इसके लिये एक सदस्यीय जांच समिति बनायी गयी जिसमें वे अकेले रहेंगेे।मुख्यमंत्री के इस फरमान से कई की जान अधर में लटक गई। कहां तो तय था कि श्रीवास्तवजी के पर कतरे जाएंगे कहां उन्हें उड़ने के लिये पूरा आसमान दे दिया गया। आइएएस आफिसरों में इसकी धमक तो हुई होगी,उससे कहीं ज्यादा मीडिया और राजनीतिक प्रेक्षकों के बीच हुई है। श्रीवास्तवजी से सद्भावना रखने वालांे को मुख्यमंत्री का यह एलान दीपावली के तोहफे की तरह है तो उनसे मनभेद रखने वालों के लिये अब समस्या खड़ी हो गई है कि वापस पटरी कैसे बिठायी जाए। यूं भी मुख्यमंत्री प्रदेश के हित में अफसरशाही मंे फेरबदल करते रहे हैं। दर्जनों आफिसर इधर से उधर कर दिये गये लेकिन किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा किन्तु लगभग एक सप्ताह पहले आइएएस मनोज श्रीवास्तव को संस्कृति सचिव पद से हटाया गया तो अवसाद और उत्सव का माहौल बन गया। लगभग चार वर्ष से श्री श्रीवास्तव मुख्यमंत्री के सबसे विश्वस्त अफसरों में गिने जाते हैं। मुख्यमंत्री का यह भरोसा थोड़े से अफसरों को मिलता है और उनमें ये एक हैं। यह बात एक बड़े वर्ग को रास नहीं आयी और उन्हें हटाने की जुगत की जाने लगी। लोगों की मानें तो उनकी इच्छा जनसम्पर्क को छोड़ने की है लेकिन मुख्यमंत्री ऐसा नहीं चाहते हैं। वे जानते हैं कि सरकार की नीतियांे, कार्यक्रमों और मुख्यमंत्री की छवि स्थापित करने में बतौर आयुक्त जनसम्पर्क उन्होंने बेहतर काम किया है। फिलवक्त, मुख्यमंत्री ने एक बार फिर संदेश दे दिया है कि अभी तो मनोज श्रीवास्तव का कोई विकल्प नहीं।
-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे। किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक...
बिल्कुल हमें भी यह जानकर बहुत धक्का लगा परंतु उन्हें संस्कृति सचिव के पद पर जब बैठाया गया था तब भी हमें उतना ही आश्चर्य हुआ था क्योंकि उनकी छबि दिग्विजय सिंह के विश्वस्तों की थी।
जवाब देंहटाएंthanks for new view of news
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