सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

nathaa

नत्था के आगे क्या होगा ओंकारदास मानिकपुरी का?
मनोज कुमार
लगभग अनजाना सा एक लोककलाकार रातोंरात सुपरस्टार बन जाता है। सालांे से परदे के पीछे छिपे इस कलाकार की प्रतिभा किसी ने न देखी और न दिखायी दी। आमिर खान को धन्यवाद किया जाना चाहिए कि उसने छत्तीसगढ़ की माटी से हीरा तलाश कर करोड़ों दर्शकों तक पहुंचाया। आमिर के इस प्रयास के बाद भी ओंकारदास मानिकपुरी आज भी गुमनाम है। कोई जानता है और पहचानता है तो नत्था को। यह पहचान का संकट अकेले ओंकारदास मानिकपुरी का नहीं है बल्कि पहचान का यह संकट हर लोककलाकार के सामने है। इन संकटों में एक बड़ा संकट तो मैं यह देख रहा हंू कि आमिर खान ने पीपली लाइव बनाकर ओंकारदास को नत्था बना कर एक पहचान दिला दी किन्तु अब नत्था उर्फ ओंकारदास को और कितनी फिल्में मिल पाएंगी? कितने फिल्मकारों को नत्था की जरूरत होगी? क्या इनमें से कोई आमिर खान की तरह नत्था का उपयोग कर पाएगा? जवाब भी ओंकारदास के पहचान की तरह गुमनाम है। ओंकारदास पहले लोककलाकार नहीं हैं जिन्हें यह ख्याति मिली। इसके पहले भी और लोक कलाकार हैं जिन्हें यह अवसर मिला किन्तु इसके बाद वे गुमनामी के अंधेरे में डूब गये।
ओंकारदास ने पीपली लाइव में अभिनय कर यह तो जता दिया कि उनमें वे सब खूबियां हैं जो बड़े परदे की जरूरत है किन्तु इस कामयाबी ने ओंकारदास की आंखों में जो सपने जगाये हैं, वह आगे चलकर उसे निराश न कर दें। अपनी कामयाबी से खुश ओंकारदास भिलाई पहुंचने पर बातचीत में कहा है कि थियेटर में तो तंगहाली के दिन है। अब वह बच्चों को अच्छे से पढ़ा सकेगा। एक पिता होने के नाते यह चिंता जायज है किन्तु क्या उसे इस बात का वायदा मिला है कि आगे भी उन्हें फिल्में मिलेंगी? यदि ऐसा है तो यह बहुत बढ़िया खबर है और नहीं है तो चिंता की बात।

इन संकटों के बीच मुझे लगता है कि इन लोककलाकारों को एक किस्म के चरित्र में कैद रहने के बजाय फिल्म की हर वो खूबी सीखने की कोशिश करनी चाहिए ताकि फिल्मों में उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। नत्था किसान बार बार दोहराया नहीं जाएगा लेकिन किसान के रूप में, मजदूर के रूप में, एक आम आदमी के रूप में ये कलाकार चरित्र अभिनेता बन सकते हैं इस दिशा में इन्हें कोशिश करनी चाहिए। फिल्म वालों को भी इस तरफ ध्यान देना चाहिए ताकि ओंकारदास मानिकपुरी ओंकारदास बना रहे, नत्था बन कर गुम न हो जाए।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक...

नागरिक बोध और प्रशासनिक दक्षता से सिरमौर स्वच्छ मध्यप्रदेश

  मनोज कुमार वरिष्ठ पत्रकार                    स्वच्छ भारत अभियान में एक बार फिर मध्यप्रदेश ने बाजी मार ली है और लगातार स्वच्छ शहर बनने का रिकार्ड इंदौर के नाम पर दर्ज हो गया है. स्वच्छ मध्यप्रदेश का तमगा मिलते ही मध्यप्रदेश का मस्तिष्क गर्व से ऊंचा हो गया है. यह स्वाभाविक भी है. नागरिक बोध और प्रशासनिक दक्षता के कारण मध्यप्रदेश के खाते में यह उपलब्धि दर्ज हो सकी है. स्वच्छता गांधी पाठ का एक अहम हिस्सा है. गांधी जी मानते थे कि तंदरूस्त शरीर और तंदरूस्त मन के लिए स्वच्छता सबसे जरूरी उपाय है. उनका कहना यह भी था कि स्वच्छता कोई सिखाने की चीज नहीं है बल्कि यह भीतर से उठने वाला भाव है. गांधी ने अपने जीवनकाल में हमेशा दूसरे यह कार्य करें कि अपेक्षा स्वयं से शुरूआत करें के पक्षधर थे. स्वयं के लिए कपड़े बनाने के लिए सूत कातने का कार्य हो या लोगों को सीख देने के लिए स्वयं पाखाना साफ करने में जुट जाना उनके विशेष गुण थे. आज हम गौरव से कह सकते हैं कि समूचा समाज गांधी के रास्ते पर लौट रहा है. उसे लग रहा है कि जीवन और संसार बचाना है तो ...

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.