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प्रताड़ना के औजार
मनोज कुमार

स्त्री को प्रताड़ित करने के लिये समाज ने कई तरह के औजार एकत्र कर लिये हैं। उसके जन्म से मृत्यु तक ऐसे अनेक औजार हैं जिन्हें वह समय समय पर रूप बदल बदल कर उपयोग में लाता रहा है। भ्रूण हत्या एक औजार है तो बाल विवाह दूसरा औजार और इससे भी बात न बने तो चरित्रहीन, डायन कहकर स्त्री को मरने के लिये छोड़ दिया जाए। विधवा स्त्री के जीवन का सच और उसके लिये प्रताड़ना का औजार तो पहले से तैयार है। किसी समय, कहीं कहीं आज भी सती नाम से एक औजार उपयोग में आ रहा है। प्रताड़ना के औजार के खिलाफ कागज पर कानून बनते रहे हैं किन्तु सच में औजार अपना काम निर्बाध रूप से कर रहा हैं। लगभग पांच बरस हो गए छत्तीसगढ़ की सरकार ने स्त्री प्रताड़ना के उस औजार को भोथरा करने के लिये टोनही निरोधक कानून बनाया था लेकिन आज भी स्त्री टोनही के नाम पर सार्वजनिक प्रताड़ना का षिकार हो रही हैंं। कहीं कहीं तो नौबत जान देने की आ जाती है। अब राजस्थान सरकार ने इसी औजार को भोथरा करने के लिये डायन कहने, प्रताड़ित करने या ऐसा कुछ करने के लिये कठोर कानून बनाने जा रही है। हम तो उम्मीद कर सकते हैं कि स्त्री प्रताड़ना का यह औजार भोथरा हो जाए किन्तु सच और कागज में एक फर्क होता है बिलकुल वैसे ही जैसा कि बाल विवाह रोकने के लिये षारदा एक्ट अस्तित्व में है किन्तु मानने वाले अदृष्य हैं। हर वर्ष बाल विवाह के नाम पर हजारों बच्चियां बेड़ियों में बांध दी जाती हैं।
भ्रूण हत्या पहले एक रिवाज रहा होगा किन्तु अब यह फैषन में आ गया है। सरकार भू्रण हत्या रोकने के लिये अथक प्रयास कर ले किन्तु बाजार ऐसा नहीं होने देगा। हर साल आंकड़ें आएंगे जिनमें बेटियां गुमनाम होती जाएंगी। सरकार ने लिंग परीक्षण पर रोक लगा दिया है तो बाजार ने एक छोटा सा हथियार ईजाद कर दिया है जिसके जरिये युवती यह जान लेगी कि वह गर्भवती है कि नहीं। लिंग परीक्षण की नौबत ही नहीं आने दी जाएगी। इस तरह सरकार का कानून भी नहीं टूट रहा है और भ्रूण हत्या भी जारी है। इस साजिष के खिलाफ सरकार कब आएगी? स्त्री प्रताड़ना का यह नया औजार फैषनपरस्त समाज को भा रहा है। नैतिकता की बातें आले में रख दी गई हैं। उसे कई झंझटों से मुक्ति और मुक्त जीवन का अहसास हो रहा है। स्त्री प्रताड़ना के इस नये औजार के बारे में सरकार फिर कभी कोई कानून बनाएगी, इसके पहले हमें ही जागना होगा। नहीं जागे तो बेटियों की गुम होती हंसी हमारी नींद ले उड़ेगी। समय रहते चेत जाने में ही हमारी भलाई है।
मैं इस बात को लेकर हैरान भी हूं और परेषान भी कि आखिर स्त्री प्रताड़ना के औजार बनाने वाले कितने षातिर दिमाग के हैं। उनकी षैतानी दिमाग में कभी यह सवाल नहीं उपजा कि बेटियां कम हो जाएंगी तो उन्हें राखी बांधने वाला कौन होगा? यह सवाल भी बाद का है पहले तो लोरी सुनाने वाली अम्मां ही नहीं रहेगी तो लोरी सुनने वाला कहां से आएगा? भीड़ में गुम होते ये सवाल आज हमारे सामने यक्ष प्रष्न बन कर खड़ा है। मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं कि समाज में पुरूष को कब टोनही या डायन कह कर बुलाया जाएगा या फिर कब उसे सता होने का गौरव प्राप्त होगा। अभी तो सवाल यही है  िकइस बार अक्षय तृतीया पर कितने मासूमों को ब्याह की बेड़ियों में जकड़ा जाएगा।

टिप्पणियाँ

  1. स्त्रियों की इस दारुण-करुण व्यथा के मार्मिक चित्रण के लिए बधाई.सामाजिक सरोकारों पर आपके आलेख समाज में नई ज्योति प्रज्ज्वलित करने में सफल हों यही शुभकामनाएं हैं. आगे भी ऐसे ही विषयों पर और पढ़ने की उत्कंठा लगातार बनी रहेगी.

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