सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पाठ शाला


क्या जरूरी है कि हर फिल्में स्टूडेंट का शिक्षक से प्यार दिखाना?
अभी अभी पाठशाला फिल्म देख रहा था। एक सामाजिक संदेश देती इस फिल्म में बहुत कुछ अच्छा है और अच्छा नहीं है तो एक छात्रा का अपने शिक्षक के प्रति प्रेम। मुझे बहुत ज्यादा तो याद नहीं है किन्तु राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर में शिक्षिका के प्यार में छात्र पड़ जाता है। दरअसल यह प्यार नहीं बल्कि जिस्मानी लगाव था। एक खूबसूरत स्त्री के बदन के प्रति लगाव। लगभग ऐसा ही कुछ शाहरूख खान ने अपनी फिल्म में भी दिखाया था। इस फिल्म में सुष्मिता सेन शिक्षिका और विद्यार्थी स्वयं शाहरूख खान थे। अब एक बार फिल्म इसी विषय का फिल्मांकन पाठशाला में देखने को मिला है। इसमें शाहिद कपूर शिक्षक की भूमिका में है और उसके कथित प्यार में उसकी एक स्टूडेंट डूबी हुई है। सवाल यह है कि आखिर फिल्मों का यह विषय क्यों होता है। यह सच है कि हम सब प्रोफेसर मटुकनाथ को नहीं भूले होंगे लेकिन ऐसे विषयों को फिल्मा कर हम इन चीजों को और बढ़ावा देने की कोशिश कर ते हैं जिसकी मैं तो निंदा करता हूं। सूचना के लिये बता दूं कि अभी भड़ास में एक खबर चल रही है जिसमें एक गुरू की नैतिकता पर सवाल उठाये गये हैं। समाज में गुरू और शिष्य का रिश्ता पवित्रता का है। गुरू मार्गदर्शक होता है। वह भविष्य का निर्माता कहलाता है और ऐसे में इन संबंधों को फिल्म का विषय बनाना न केवल अपने आप में अनैतिक है बल्कि अनैतिकता को बढ़ावा देने की एक साजिश भी। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि हम ऐसे मामलों का विरोध नहीं करते हैं। आइए यह एक ऐसा मसला है जिस पर हम सभी को विचार करना है और ऐसे प्रयासों को दरकिनार करना है ताकि शिक्षक की प्रतिष्ठा कायम रह सके। मेरा आग्रह है कि यदि आप मेरे मत से सहमत हैं तो विभिन्न माध्यमों से इस विषय पर जनमत बनायें। शिक्षक बचेगा तो समाज और देश बचेगा।
मनोज कुमार

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के