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एक जननायक बन जाने की कथा

मनोज कुमार
वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया विश्लेषक 

राजनेताओं को समय-समय पर उपाधियां मिलती रही हैं. यह उपाधियां किसी संविधान के तहत नहीं बल्कि समाज की सहमति से तय होती हैं और आहिस्ता आहिस्ता चलन में आ जाती हैं. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को समाज ने कभी किसान का बेटा कहकर पुकारा तो कभी पांव पांव वाले भैया कह और इन दिनों उनके लिये नया तखल्लुस इस्तेमाल हो रहा है जननायक. किसान का बेटा होने के कारण इस तखल्लुस में आकर्षण नहीं था लेकिन पांव-पांव वाले भइया में कुछ आकर्षण दिखा. मुख्यमंत्री बनने के पहले और बाद में भी वे जनता से मिलने मोटर-कार के बजाय पैदल ही चला जाया करते थे. आम आदमी के लिये यह अलग किस्म का अनुभव था सो यह तखल्लुस लोकप्रिय हो गया. इसके बाद अचानक से उन्हें जननायक पुकारा जाने लगा. यह तखल्लुस सुनने में भला लगता था लेकिन इसके कारणों की पड़ताल किये बिना इसे समझ पाना मेरे लिये मुश्किल सा था. 

खैर, जिंदगी रफ्ता-रफ्ता गुजर रही थी. रोज की तरह किसी एक मैजिक में मैं धंसा घर वापस आ रहा था. एक पत्रकार होने के नाते आसपास क्या हो रहा है, इस पर तो नजर रहती ही है बल्कि आसपास क्या संवाद हो रहा है, यह भी जांच लेता हूं. जिस जननायक का सवाल मेेरे मन में कौंध रहा था, उसका जवाब इतनी आसानी से मिल जायेगा, यह सोचा भी नहीं था. हुआ यों कि जिस मैजिक में मैं सवार था, उस मैजिक के चालक का गलत चालान काट दिया गया था. मैजिक चालक ने न केवल पहले अपने साथ हुये गलत चालान की जांच की और तत्काल में उस चालान बनाने वाले अफसर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराकर मानहानि का मुकदमा भी ठोंक दिया.
अब मेरे चौंकने की बारी थी. एक मैजिक चालक की इतनी हिम्मत की वह पुलिस वाले से पंगा ले. मैं कुछ सोच और पूछ पाता कि उसने साथ चल रहे अपने साथी को आगे की घटना का ब्यौरा दिया. बकौल मैजिक चालक- हमारे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जब गलत आरोप लगाने पर अजयसिंह पर मानहानि का मुकदमा कर सकते हंै तो हम अपने अधिकारों के लिये क्यों नहीं...? 
मैजिक चालक की इन बातों के बाद से पता चला गया कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को किसी व्यक्ति, संस्था या दल ने नहीं बल्कि समाज ने जननायक पुकारा है. जिनके कार्यों से समाज प्रेरित हो, उनकी अनुगामी बने, वह तो जननायक होगा ही. किसान का बेटा और पांव-पांव वाले भइया से ऊपर और शायद सौफीसदी सही है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के लिये जननायक का तखल्लुस. इन्हें ही समाज कहता है मील का पत्थर. यह तो एक मामला है और न जाने कहां कहां और कितने लोगों ने मुख्यमंत्री से प्रेरणा पाकर अपनी जिंदगी को बदली होगी. समाज में बदलाव लाने वाले व्यक्ति ही सही अर्थों में जननायक होते हैं. 
लिये यह अलग किस्म का अनुभव था सो यह तखल्लुस लोकप्रिय हो गया. इसके बाद अचानक से उन्हें जननायक पुकारा जाने लगा. यह तखल्लुस सुनने में भला लगता था लेकिन इसके कारणों की पड़ताल किये बिना इसे समझ पाना मेरे लिये मुश्किल सा था. 

खैर, जिंदगी रफ्ता-रफ्ता गुजर रही थी. रोज की तरह किसी एक मैजिक में मैं धंसा घर वापस आ रहा था. एक पत्रकार होने के नाते आसपास क्या हो रहा है, इस पर तो नजर रहती ही है बल्कि आसपास क्या संवाद हो रहा है, यह भी जांच लेता हूं. जिस जननायक का सवाल मेेरे मन में कौंध रहा था, उसका जवाब इतनी आसानी से मिल जायेगा, यह सोचा भी नहीं था. हुआ यों कि जिस मैजिक में मैं सवार था, उस मैजिक के चालक का गलत चालान काट दिया गया था. मैजिक चालक ने न केवल पहले अपने साथ हुये गलत चालान की जांच की और तत्काल में उस चालान बनाने वाले अफसर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराकर मानहानि का मुकदमा भी ठोंक दिया.

अब मेरे चौंकने की बारी थी. एक मैजिक चालक की इतनी हिम्मत की वह पुलिस वाले से पंगा ले. मैं कुछ सोच और पूछ पाता कि उसने साथ चल रहे अपने साथी को आगे की घटना का ब्यौरा दिया. बकौल मैजिक चालक- हमारे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जब गलत आरोप लगाने पर अजयसिंह पर मानहानि का मुकदमा कर सकते हंै तो हम अपने अधिकारों के लिये क्यों नहीं...? 

मैजिक चालक की इन बातों के बाद से पता चला गया कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को किसी व्यक्ति, संस्था या दल ने नहीं बल्कि समाज ने जननायक पुकारा है. जिनके कार्यों से समाज प्रेरित हो, उनकी अनुगामी बने, वह तो जननायक होगा ही. किसान का बेटा और पांव-पांव वाले भइया से ऊपर और शायद सौफीसदी सही है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के लिये जननायक का तखल्लुस. इन्हें ही समाज कहता है मील का पत्थर. यह तो एक मामला है और न जाने कहां कहां और कितने लोगों ने मुख्यमंत्री से प्रेरणा पाकर अपनी जिंदगी को बदली होगी. समाज में बदलाव लाने वाले व्यक्ति ही सही अर्थों में जननायक होते हैं. 

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