सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सहिष्णुता मीडिया का गुण-धर्म


नोज कुमार
समाज में जब कभी सहिष्णुता की चर्चा चलेगी तो सहिष्णुता के मुद्दे पर मीडिया का मकबूल चेहरा ही नुमाया होगा. मीडिया का जन्म सहिष्णुता की गोद में हुआ और वह सहिष्णुता की घुट्टी पीकर पला-बढ़ा. शायद यही कारण है कि जब समाज के चार स्तंभों का जिक्र होता है तो मीडिया को एक स्तंभ माना गया है. समाज को इस बात का इल्म था कि यह एक ऐसा माध्यम है जो कभी असहिष्णु हो नहीं सकता. मीडिया की सहिष्णुता का परिचय आप को हर पल मिलेगा. एक व्यवस्था का मारा हो या व्यवस्था जिसके हाथों में हो, वह सबसे पहले मीडिया के पास पहुंच कर अपनी बात रखता है. मीडिया ने अपने जन्म से कभी न्यायाधीश की भूमिका नहीं निभायी लेकिन न्याय और अन्याय, सुविधा और सुरक्षा, समाज में शुचिता और देशभक्ति के लिए हमारे एक ऐसे पुल की भांति खड़ा रहा जो हमेशा से निर्विकार है, निरपेक्ष है और स्वार्थहीन. यह गुण किसी भी असहिष्णु व्यक्ति, संस्था या पेशे में नहीं होगा. इस मायने में मीडिया हर कसौटी पर खरा उतरता है और अपनी सहिष्णुता के गुण से ही अपनी पहचान बनाये रखता है.
मीडिया की सहिष्णुता के गुण को समझने के लिए थोड़ा विस्तार की जरूरत होगी. पारम्परिक संचार माध्यमों से उन्नत होते हुए मीडिया आज हथेलियों पर आ चुका है. मीडिया की उन्नति समाज के किसी और पेशे के लिए ईष्या का कारण हो सकती है क्योंकि तकनीक के विकास के साथ आज तक कोई ऐसी चिकित्सा पद्धति नहीं बन सकी जो चलते-फिरते आपका दर्द दूर कर सके, कोई तकनीक नहीं कि कोई इंजीनियर हथेली पर रखे यंत्र से निर्माण कार्य को अंजाम दे सके या कोई ऐसी तकनीक पुलिस व्यवस्था के पास नहीं आ पायी है जिससे अपराध पर नियंत्रण पाया जा सके. तकनीक तो न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के पास भी नहीं है कि वह हथेली पर रखे यंत्र से अपने कार्य और निर्णय को समाज तक पहुंचा सके. केवल एकमात्र मीडिया है जो हथेली पर रखे यंत्र से समाज में सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुंचाने में कामयाब होता है. यह मीडिया की ताकत है कि वह उन सूचनाओं को नेपथ्य में ढकेल देता है जिससे समाज की शुचिता बाधित होती है. यह मीडिया ही है जो लाखों किलोमीर बसे लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है और उनके अच्छे कामों से समाज को परिचित कराता है. शासन और सरकार लाखों योजनाएं बना लें लेकिन मीडिया के बिना समाज से जुड़ जाने की कोई विधा सरकार के पास नहीं है. जनहित की सूचनाओं को लोगों तक तटस्थ भाव से पहुंचाने का काम मीडिया ही करता है. 
समाज के चौथे स्तंभ का दर्जा पाये मीडिया को अपनी जवाबदारी का अहसास है इसलिए वह पूरी सहिष्णुता के साथ अपने दायित्व की पूर्ति के लिए हमेशा तत्पर रहता है. मीडिया सहिष्णुता के कई आयाम हैं. प्राकृतिक आपदाओं के समय जब लोग डरे-सहमे अपने घरों में संशय में जी रहे होते हैं तब मीडिया अपनी जान की परवाह किए बिना तूफान हो या प्लेग, भूकंप हो जलजला, घटनास्थल पर पहुंच कर समाज को राहत देने की कोशिश करता है. अपनी जान की परवाह किए बिना, अपने परिवार से बेखबर समाज की चिंता में मीडिया उन खबरों पर हाथ डालने से भी नहीं चूकता जिनसे रसूखदारों को बेनकाब करना होता है. यह सब संभव हो पाता है कि मीडिया के सहिष्णुता के कारण. अपवाद को छोड़ दें तो मीडिया कभी अतिरेक में नहीं बहता. वह संयमित रहता है लेकिन मीडिया का रोमांच उसकी सक्रियता का सबब है. 
निरपेक्ष और नि:स्वार्थ भाव से समाज और देश के लिए जुटे रहने वाला मीडिया हमेशा सवालों से घिरा रहता है. समाज का मीडिया पर इतना अधिक विश्वास है कि वह मीडिया की मानवीय भूल के कारण भी होने वाली एक गलती को बर्दाश्त नहीं कर पाता है. समाज की अपेक्षाएं इस कठिन समय में अगर किसी से शेष रह गयी है तो वह मीडिया है. उसे एक डाक्टर से इस बात की अपेक्षा नहीं है कि जो डाक्टर इस बात की शपथ लेता है कि वह नि:स्वार्थ रूप से समाज की भलाई के लिए कार्य करेगा लेकिन आए दिन आने वाली खबरें बताती है कि क्या हो रहा है. एक इंजीनियर से भी वह निराश है. अनेक दुर्घटनाओं का कारण उसके द्वारा बनायी गई घटिया पुल और पुलिया है जो अचानक टूट जाती हैं जिससे अकारण अनेक लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं. नेता और प्रशासन भी समाज के लिए बहुत उत्साह का भाव पैदा नहीं करते हैं. अक्सर वे चर्चा में इन्हें अपनी विश्वास की प्राथमिकता में नहीं रखते हैं किन्तु जब बात मीडिया की आती है तो सर्वाधिक शिकायतें मीडिया से होती है. सहिष्णु मीडिया के लिए समाज का यह भाव स्थायी पूंजी है. जब जब मीडिया की आलोचना होती है, समाज जब तब उस पर अविश्वास का भाव जताता है, वह असहिष्णु नहीं होता है और ना ही अपनी आलोचना से घबराता है. समाज की आलोचना ही मीडिया की असली ताकत है. इस आलोचना के कारण ही उसे बेहतर करने के लिए ऊर्जा मिलती है. समाज जब मीडिया पर अविश्वास जताता है तो मीडिया फोरम पर इसकी चर्चा होती है और चिंता की जाती है कि हम अपनी इस कमजोरी को कैसे दूर करें. समाज ऊपर उल्लेखित प्रोफेशन पर भी अविश्वास जताता है लेकिन ये लोग इसकी फ्रिक नहीं करते हैं और ना ही किसी फोरम में इस पर चर्चा करते दिखते हैं.
इनकी बेपरवाही का मूल कारण इनके भीतर की असहिष्णुता है और इस असहिष्णुता के मूल में है साधन जबकि मीडिया के पास सहिष्णुता इसलिए है कि उसके पास न्यूनतम साधन हैं किन्तु साध्य एक ही है देश और समाज कल्याण. इस बात का उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस बात का आंकड़ा जारी करते हैं कि अपने कार्य को अंजाम देते हुए हर वर्ष सैकड़ों की संख्या में मीडिया साथी मौत के घाट उतार दिए जाते हैं. यह अलग तरह का पैशन है जहां मौत डराती नहीं है बल्कि साहस जगाती है और दूसरे साथी उस काम को करने के लिए जुट जाते हैं. यह सब कुछ संभव होता है मीडिया की सहिष्णुता से. असहिष्णु होकर आप बदला लेने पर उतारू हो जाते हैं. आपका लक्ष्य बदल जाता है लेकिन मीडिया के पास रिवेंज का कोई रास्ता नहीं होता है. वह गलत को गलत कहने में नहीं चूकता है तो सही की तारीफ करने में भी वह गुरेज नहीं करता है. सहिष्णुता मीडिया का गुण-धर्म है और अपने इसी गुण-धर्म की वजह से वह समाज का चौथा स्तंभ कहलाता है. आखिर में अपने अनुभव के साथ मैं यह कह सकता हूं कि इस समाज में दो तरह के सैनिक हैं एक वह जो सीमा पर खड़े होकर देश की रक्षा करता है तो दूसरा मीडिया जो समाज के बीच रहकर समाज में शुचिता बनाये रखने का कार्य करता है. दोनों सैनिकों का गुण है सहिष्णुता.  मोबा. 9300469918

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के