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अक्तूबर 25, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मीडिया

मीडिया और पत्रकारिता के फर्क को समझिये मनोज कुमार पत्रकारिता और मीडिया के फर्क को भुला दिया गया है। इधर जितनी आलोचना हो रही है और भद पीट रही है वह मीडिया की है न कि पत्रकारिता की। इस आलोचना का पात्र आंषिक रूप् से पत्रकारिता हो सकती है लेकिन पूरी तरह से नहीं। जैसे एक समाचार पत्र में काम करने वाले गैर पत्रकार को भी आम आदमी पत्रकार समझ कर व्यवहार करता है ठीक उसी प्रकार मीडिया को भी पत्रकारिता मान लिया गया है जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। मीडिया पत्रकारिता का एक समग्र रूप् है जबकि पत्रकारिता अपने आप में वटवृक्ष की तरह है। पत्रकारिता से आषय खबर और उससे जुड़े विष्लेशण, चिंतन आदि इत्यादि किन्तु पत्रकारिता में मनोरंजन का कोई स्थान नहीं है वहीं मीडिया में खबर और उससे जुड़े पक्ष एक हिस्सा है तो उसका नब्बे फीसदी हिस्सा मनोरंजन और दूसरे पक्षों से संबद्व है। मीडिया और पत्रकारिता का ऐसा घालमेल किया गया है और किया जा रहा है कि दोनों का बुनियादी अंतर ही समाप्त हो गया है। पाठक और दर्षक तो पत्रकारिता अर्थात मीडिया को मानते हैं जबकि ऐसा है नहीं। यह वृत्ति अकेले पाठकोें और दर्षकों तक नहीं सिमटी है बल्कि पत्रक