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अक्तूबर 3, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पत्रकारिता

तो मान ही लिया जाये कि खबर की कीमत तय हो ही गई? -मनोजकूमारातो अब यह मान ही लिया जाए कि हम पत्रकार बंधु मालदार हो गये हैं। जो कभी निखालिस तनख्वाह पर जीते थे, उनके सोर्स अब बढ़ गये हैं। अब वे खबरों के सेल्समेन बन गये हैं। कुछ उम्दा किस्म के सेल्समेन के पास आमद बहुत हो गई है और यही कारण है कि समाज ने जिनके कंधे पर काले धंधे करने वालों का पर्दाफाश करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, आज उन्हें ही समाज के सामने सफाई देने के लिये खड़ा होना पड़ रहा है। पत्रकारों के अलग अलग मंच से यह बात उठ रही है कि पत्रकारों को भी अपनी सम्पत्ति की घोषणा करना चाहिए। मुझे अब तक लगता था कि पत्रकार तो निरीह होता है और इसलिये वह सरकार के सामने बार बार सुविधा बढ़ाने की मांग करता है। रियायत देने की मांग करता है। लेकिन इस बहस के बाद अब मेरी राय बदलने लगी है। अब मुझे लगने लगा है कि जो बात बार बार उठायी जा रही है कि पत्रकारिता से मिशन का लोप हो गया है, वह बेबुनियाद नहीं है। मैं साथियों से बहस करता था कि आजाद भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और ऐेसी जीवन जीने लायक मांगों के लिये लिखी जाने वाली खबरें मिशन ही तो हैं। कुछ सहमत थे और