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अक्तूबर 9, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विजय का दशहरा

मनोज कुमार वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया विश£ेषक भारत वर्ष में बस्तर और कुल्लू का दशहरा पर्व संसार भर में ख्यात है. दोनों स्थानों में मनाये जाने वाले दशहरा पर्व की अपनी अपनी विशेषतायें हैं. इस बार बस्तर का दशहरा पर्व कुछ अलग ही मायने रखता है. बस्तर का इस वर्ष का दशहरा पर्व सही अर्थों में विजय का दशहरा पर्व कहा जा सकता है. कुछ महीने पहले ही बस्तर की हरी-भरी भूमि पर जो रक्तपात हुआ और इसके पहले जो रक्तपात होता रहा है, वह दिल दहला देने के लिये कम नहीं है. पूरा देश इस रक्तपात की घटनाओं से जख्मी है और हतप्रभ भी. ऐसी विषम स्थितियों में भी आदिवासियों द्वारा अपने परम्परागत दशहरा पर्व को उसी उत्साह से मनाये जाने को विजय का दशहरा ही कहा जा सकता है. एक मामूली बम फटने के बाद जब लोग दुबक जाते हैं, बम फटने की आवाज देर तक डराती रहती है तब बस्तर की धरती और उसके जन बार बार के रक्तपात से न सहमते हंै, न सिहरते हैं बल्कि दुगुने उत्साह के साथ स्वयं को खड़ा कर लेते हंै. बस्तर के आदिवासियों का यह उत्साह केवल उत्सव का उत्साह नहीं है बल्कि जीवन का उत्साह है जो समूचे संसार को एक नया पाठ पढ़ाता है.  बस्तर