शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

khari khari

कोलावरी डी अब गाना नहीं, लोरी है

मनोज कुमार

मां और बच्चे के बीच स्नेह का रिश्ता प्रगाढ़ करने वाले गीत को हम बचपन से लोरी के नाम पर सुनते आये हैं। रोता बच्चा, भूखा बच्चा, परदेस गये पिता की याद में बिसूरता बच्चा जब अपनी मां से मीठी लोरी सुनता है तो देखते ही देखते उसकी पलके झपकने लगती है और वह सो जाता है। इस मीठी लोरी गाने वाली मां को अपनी आवाज नहीं मांजनी होती है और ना ही उसे कोई रियाज करना होता है। स्नेह के साथ थपकी देती मां के बोल सो जा राजा, सो जा बिटिया रानी…और बस इसी के साथ बच्चे सपनों की दुनिया में डूबने उतरने लगते हैं अपनी मां की बाहें थामे।

लोरी एक पुरानी विधा है बच्चों को पालने की, उन्हें सीख देने की और इस विधा को फिल्मों में भी खूबसूरती से फिल्माया गया है। लल्ला लल्ला लोरी…दूध की कटोरी…या फिर मेरे घर आयी एक नन्हीं परी…आदि इत्यादि। अनेक ऐसे गीत लोरी बनकर भारतीय दर्शकों का न केवल मनोरंजन करते रहे हैं बल्कि घरों में काम आते रहे हैं। समय बदला, चीजें बदली, सोच बदली और बदल गयी दुनिया। मां भी आधुनिक हो गयी है। आज की मां ने खुद लोरी सुनकर निंदिया रानी की गोद में गयी होगी लेकिन अब वक्त की कमी है।

यह कह देना पूरी तरह से गलत होगा कि लोरी के दिन लद गये बल्कि यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि लोरी अब नये अवतार में है। कोलावरी डी के रूप में। अपने घर आंगन से लेकर ट्रेन के सफर में रोते बच्चे को मां कहती है बेटा चुप हो जा..तुझे कोलावरी डी सुनाती हूं। बच्चा धधकते और धकड़ते संगीत के शोर में लगभग चिल्लाते हुए, बोल भी अनजान और एक मध्यमवर्गीय परिवार के समझ से बाहर कोलावरी डी को सुन कर, शायद डर कर भी कहें तो गलत नहीं होगा…बच्चा आंखें मींच लेता है और आहिस्ता आहिस्ता नींद के आगोश में चला जाता है। इस लोरी को गाने की जरूरत भी नहीं है…मोबाइल चालू कर दीजिये, आइपॉड से भी सुना सकते हैं…

लोरी कोलावरी डी से बच्चा सो जाता है लेकिन भीतर ही भीतर सहम जाता है। कोलावरी डी उसे साहस नहीं देता है, लल्ला लल्ला लोरी…उसे साहस देता था…चंदा और चिड़िया की बातें बच्चों की दुनिया गढ़ती थीं…कोलावरी डी को सुनकर बच्चों के चेहरे पर सोते समय की मीठी मुस्कान नहीं दिखती है…चंदा और चिड़िया के टूटे-फूटे गीतों को सुनकर बच्चे के चेहरे पर एक शांत चमक आ जाती है। मैं अंग्रेजी कम जानता हूं..इस बात का धन्यवाद कर सकता हूं…वह इसलिये कि मुझे कोलावरी डी का हिन्दी अनुवाद नहीं मालूम लेकिन जिन लोगों को कोलावरी डी का हिन्दी अनुवाद मालूम है, उनसे एक आग्रह है, निवेदन है कि वे उसका अर्थ जान लें….यह किसी भी अर्थ में लोरी हो नहीं सकती..होना भी नहीं चाहिए..बच्चों को चांद और चिड़िया, परी और पंख की लोरी ही सुनने दें…उनके मन में विश्वास पलने दें…

#बहने से बिसराने तक की ‘गैस गाथा’

छायाचित्र वरिष्ठ छायाकार श्री प्रकाश हतवलने की फेसबुक वॉल से साभार प्रो. मनोज कुमार चालीस बरस पहले भोपाल की में ‘हवा में जहर’ घुल गया था. ...