राजधानी भोपाल के अंदाजे बयां और है... . मनोज कुमार भो पाल एक शहर नहीं बल्कि राजधानी है और राजधानी होने का अर्थ एक आम शहर से अलग होना है। भोपाल में भी दो भोपाल बसा हुआ है। यादों और वादों का भोपाल। यादों का भोपाल अर्थात पुराना भोपाल और वादों का भोपाल अर्थात नया भोपाल जिसे हम मध्यप्रदेश की राजधानी कहते हैं। भोपाल शहर नहीं, राजधानी है और एक वीवीआयपी शहर की तरह वह पिछले तिरपन वर्षाें से जी रहा है। हालांकि इस शहर की भी समस्याएँ बिलकुल वैसी ही हैं जैसे मध्यप्रदेश के अन्य शहरों की लेकिन मुसीबतजदा इस शहर को अपने ऊपर राजधानी होने का गर्व है। यह गर्व अकारण नहीं है। यहां महामहिम राज्यपाल रहते हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री की सत्ता भी इसी शहर से चलती है जिसकी गूंज झाबुआ से मंडला तक गूंजती है। विधानसभा भी भोपाल में हैं तो मंत्रालय के साथ वल्लभ भवन, सतपुड़ा और विंध्याचल भी भोपाल में है। तिरपन बरस पहले का भोपाल राजा भोज की नगरी थी। कहा जाता है कि तब यह भोपाल न होकर भोजपाल हुआ करता था और इस भोपाल शहर को उस समय के नवाबों ने संजोया और संवारा। तब भोपाल राजधानी भी नहीं था। तिरपन बरस पहले जब नये मध्यप्रदेश ...
हिन्दी पत्रकारिता पर एकाग्र, शोध एवं अध्ययन का मंच