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सितंबर 25, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बुद्ध चुनें या युद्ध?

-मनोज कुमार      एक बार फिर हम अधर्म पर धर्म की जीत का उत्सव मनाने की तैयारियों में जुट गए हैं. बुराईयों पर अच्छाई की जीत का पर्व सदियों से मनाते चले आए हैं लेकिन ऐसा क्या है कि ये बुराई कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती है? मैं सोचता था कि कभी कोई साल ऐसा भी आएगा जब हम अच्छाईयों का पर्व मनाएंगे. विजय का पर्व होगा. किसी की पराजय की चर्चा तक नहीं करेंगे, पराजित करना तो दूर रहा लेकिन आखिर वह साल अब तक मेरे जीवन में नहीं आया है. इसके बावजूद मैं निराश नहीं हूं. हताश भी नहीं हूंं क्योंकि मुझे लगता है कि एक दिन वह साल भी आएगा जब हम अच्छाई का पर्व मना रहे होंगे. इस अवसर का दीप जला रहे होंगे. सवाल यह है कि सदियां गुजर जाने के बाद भी जब यह संभव नहीं हो पाया तो यह होगा कैसे? मुझे लगता है कि इसमें मुश्किल कुछ भी नहीं है. बस, थोड़ा सा दृष्टि और थोड़ी सी सोच बदलने की जरूरत है. अब तक हम जय बोलते आए हैं और बुराई को पराजित कर उत्सव में मगन हो गए हैं. क्यों ना हम किसी को पराजित करने के बजाय हम उस बुराई की जड़ को ढूंढऩे की कोशिश करें जिसकी वजह से हर बार वह पराजित तो होता है लेकिन अपनी बेलें कहीं छ