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देवालय जाना हो तो ‘आजाद’ का देवालय जाइए

देवालय जाना हो तो ‘आजाद’ का देवालय जाइए -मनोज कुमार तारीखों के पन्ने में जुलाई 23 तारीख भी दर्ज है लेकिन यह तारीख पूरे भारत वर्ष के लिए गौरव की तारीख है. इस दिन धरा में एक ऐसे बच्चे की किलकारी गूंजी थी जिसने भारत वर्ष को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करा दिया. स्वयं शहीद होकर इतिहास के पन्ने पर स्वयं का नाम आजाद लिख गए. यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि जिन्हें कभी कोई चंद्रशेखर तिवारी के नाम से जानते रहे होंगे, आज वे चंद्रशेखर आजाद हैं और इस दुनिया में जब तक सूरज-चांद रहेगा, वे आजाद ही बने रहेंगे. हैं. चूंकि वे नाम से आजाद थे, इसलिए किसी राज्य की सीमा से वे बंधे हुए नहीं थे. अंग्रेज शासित भारत में पले बढ़े आजाद की रगों में शुरू से ही अंग्रेजों के प्रति नफरत भरी हुई थी। मध्यप्रदेश से लेकर उत्तरप्रदेश और लगभग सारे देश में उनके नाम की गूंज थी. आजाद का जन्म 23 जुलाई को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव में 1906 में हुआ था। आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा में ही बीता। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी अकाल पडऩे पर गांव छोड़ कर मध्यप्रदेश चले गये थे। उन