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जनवरी 11, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नरेन्द्रनाथ से स्वामी विवेकानंद हो जाना

-मनोज कुमार दुनियाभर की युवा शक्ति को दिशा देने वाले स्वामी विवेकानंद का सानिध्य अविभाजित मध्यप्रदेश को प्राप्त हुआ था. यह वह कालखंड था जब स्वामी विवेकानंद, स्वामी विवेकानंद ना होकर नरेन्द्रनाथ दत्त थे. इतिहास के पन्ने पर दर्ज कई तथ्य और स्मरण इस बात को पुख्ता करते हैं कि किशोरवय के नरेन्द्रनाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद बन जाने का जो सफर शुरू हुआ था, उसमें अविभाजित मध्यप्रदेश की आबोहवा का पूरा पूरा प्रभाव था. स्वामी विवेकानंद जी के शिकागो में दिए गए विश्व प्रसिद्ध भाषण के सवा सौ साल पूरे हो चुके हैं. इन सवा सालों में लगातार उनको सुना जा रहा है, गुना जा रहा है. अद्वितीय, अप्रतिम भाषण की बुनियाद में कहीं न कहीं उस अविभाजित मध्यप्रदेश की झलक मिलती है जिसमें उनके किशोरवय के लगभग डेढ़ वर्ष गुजारे थे.    वर्तमान में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ इस बात का गौरव अनुभव करता है कि स्वामी विवेकानंद ने यहां डेढ़ वर्ष से अधिक का समय व्यतीत किया. हालांकि जिस कालखंड में उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय व्यतीत किये तब वे स्वामी विवेकानंद नहीं थे बल्कि किशोरवय के नरेन्द्रनाथ दत्त थे जो अपने परिवा