मनोज कुमार कोई छह या सात बरस की होगी पिंकी। इस समय वह तीसरी दर्जे में पढ़ रही है। सुबह तेजी से काम निपटा कर भागकर स्कूल जाना और लौट कर घर का काम निपटाना। बाद में ट्यूशन पढऩे जाना और फिर रात में घर का काम निपटाना। पिंकी स्लेट में लिखती तो अक्षर है और उसे सीखने की कोशिश भी करती है लेकिन उसकी स्लेट पर जो इबारत लिखी हुई है उसे जिम्मेदारी कहते हैं। जिस उमर में उसे दूसरे बच्चों की तरह खेलना और मौज करना चाहिये था, उस उमर में वह जिम्मेदारी निभा रही है। छोटे-छोटे हाथों से अपने भाइयों के लिये खाना पकाना और उन्हें खिलाकर तृप्त हो जाना कि भाई भूखे नहीं हैं। उसके भाई शारीरिक रूप से कमजोर नहीं है। इसी मोहल्ले में गोलगप्पे का व्यवसाय करते हैं लेकिन पिंकी से उनकी अपेक्षायें होती हैं। अपेक्षा केवल पिंकी द्वारा भोजन पकाने की नहीं है बल्कि गोलगप्पे बनाने में मदद करे, यह भी वे चाहते हैं। पिंकी को यह सब करते हुये किसी से कोई शिकायत नहीं है और वह शिकायत का अर्थ भी नहीं जानती होगी बल्कि उसके लिये तो यही रोजमर्रा की जिंदगी है। पिंकी खुश रहती है। नाखुश रहने की भी कोई वजह नहीं है। नाखुश तो तब होती ...
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