मनोज कुमार इस कठिन समय में समाज जिस भी संकट से गुजर रहा हो लेकिन उसने अपनी पर परा और सहयोग की भावना को विस्मृत नहीं किया है. स्थिति-परिस्थिति, चाहे जैसी हो लेकिन समाज का हर आदमी एक-दूसरे की मदद के लिये तैयार रहता है. समाज का यह जागरूकता ही भारतीय संस्कृति की संवाहक है. इस संस्कृति में जात-पात का कोई अर्थ नहीं होता है. यह सब विश£ेषण और बातें एक समय के बाद बेमानी हो जाती हैं. भारतीय समाज के सामने एक ही शब्द रह जाता है जिसे हम मानवता कहते हैं. मानवता का यह उदाहरण मैंने अपने पचास होते-होते अनेक बार देखा है. कुछ संकोच से कहूं तो कदाचित कुछ लोगों के लिये मददगार भी बना हूं लेकिन इतना बड़ा भी नहीं, उसे ताउम्र स्मरण किया जा सके. लेकिन अपने आसपास जब समाज के इस दानशीलता, सहयोग को देखता हूं तो मन सहज ही भाव से भर जाता है. यहां एक ऐसी घटना आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूंगा जिसका मैं विगत दस वर्षों से अधिक समय से गवाह हूं. मैं इस समय भोपाल में रहता हूं. इसी भोपाल शहर में शिवाजीनगर नाम का मोहल्ला है और इस मोहल्ले के बीच में एक मध्यम दर्जे का बाजार है. अमूनन जैसा बाजार होता है, वैसा ही. रोजम...
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