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अगस्त 29, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जवाबदारी से दरकिनार करती तस्वीरें

मनोज कुमार सुबह सवेरे आदत के मुताबिक फेसबुक ऑन किया और सर्च करने लगा तो देखा कि किसी सज्जन ने एक तस्वीर पोस्ट की है जिसमें मां और उसके बच्चे एक लाश को गोदी में उठाये चले जा रहे हैं. सुबह सुबह मन अवसाद से भर गया. सवाल तो मन में अनेक उठे थे और सवालों के जद में खड़ी उड़ीसा के दो गरीब परिवारों की तस्वीरें भी एक बार फिर ताजा हो गई. निश्चित रूप से ये तस्वीरें समाज की संवेदनाओं को खंगाल रही हैं. व्यवस्था पर सवाल उठाती इन तस्वीरों को देखने के बाद सवालों का जंगल की तरह उग आना संभव है. निश्चित रूप से समाज में जो कुछ घट रहा है, अच्छा या बुरा, वह लोगों तक पहुंचना चाहिए. सोशल मीडिया का यह दायित्व भी है कि वह सूचनाओं से समाज को अवगत कराये लेकिन सवाल यह है कि क्या एक जिम्मेदारी के साथ हमारी दूसरी जिम्मेदारी यह नहीं है कि हमारे आंखों के सामने घटती ऐसी भयावह घटनाओं को कैमरे में कैद करने के स्थान पर उसे मदद पहुंचायें? व्यवस्था को आवाज दें और एक गरीब पीडि़त की मदद के लिए आगे आयें? दरअसल, हमने लोकप्रियता पाने के लिए वो सारे उपाय कर लिये हैं जिससे हम लाभ पाते हैं. पहले दो तस्वीरें और हाल ही एक तस्वी