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अगस्त 1, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिटिया अब नहीं जाती है पीहर

मनोज कुमार अभी अभी मेरी पत्नी अपने मोबाइल फोन से फारिंग हुई है. बीस मिनट से ज्यादा हो गये होंगे बतियाते हुए. पूछने पर पता चला कि अपनी मम्मी से बातें कर रही थी. क्या खाया, क्या पकाया, कौन आया और कौन गया से लेकर वो सारी बातें जो महीनों बाद पीहर पहुंच कर कभी बिटिया अपनी अम्मां से करती थी, अब हर दिन बल्कि हर पहर हो रही है. कोसों का फासला खत्म सा हो गया है. जब मन किया, मोबाइल का बटन दबाया और सेकंड में बातों का सिलसिला शुरू. न आने जाने की परेशानी और न साज समान की. अब बीवियां पीहर जाने का नाम नहीं लेती हैं. उनका पीहर तो मोबाइल हो गया है. कभी पीहर जाने के लिये उतावली रहने वाली बीवियां अब नहीं जाने का बहाना ढूंढ़ती हैं. पतिदेव जिद करें कि कुछ दिनों के लिये पीहर हो आओ तो वे उन पर उलटे अहसान मढ़ते हुए कहेंगी आपके और बच्चों का रूटीन डिस्टर्ब हो जाता है, इसलिये वे नहीं जाना चाहतीं. मोबाइल ने सुविधा तो दी है लेकिन कई चीजें खत्म भी कर दी है. किसी ब्याहता का पीहर जाना, केवल पीहर जाना नहीं होता था बल्कि इसके पीछे एक सामाजिक ताना-बाना होता था. पति-पत्नी के बीच की एकरसता को खत्म करने का यह एक अवसर होता