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मार्च 14, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पानी की दोस्ती और दुश्मनी

मनोज कुमार मुंबई से हमारे दोस्त राजेश चेटवाल आये थे. राजेश फिल्में बनाते हैं लिहाजा हमारा संंबंध और हमारी दोस्ती इसी वजह से हुई. कुछ काम की बातों के बीच उन्होंने अचानक अपनी कीमती मोबाइल का स्क्रीन दिखाते हुये हैरानी जाहिर की कि देखा, इस बार मुंबई को क्या हो गया है.. अभी इतनी गर्मी.. बात यहीं पर खत्म हो गई लेकिन मेरे लिये तो यह बात का एक सिरा था. अचानक से मुझे लगने लगा कि भोपाल भी एकदम से गर्म हो उठा है और इस गर्म होती धरती से पानी का स्तर एकाएक पाताल में पहुंच गया है. पाताल का अर्थ आम आदमी की पहुंच से दूर और बहुत दूर. दरअसल, स्थिति ऐसी ही है, इससे भी ज्यादा भयावह है या कि मेरी कल्पना से परे एकदम सुखद, अभी कुछ कह पाना मेरे लिये संभव नहीं है. स्थिति सुखद होगी तो मैं यह चाहूंगा कि मेरी कल्पना भरभरा कर गिर पड़े. इससे मुझे दिल से राहत मिलेगी. पिछले सालों के अनुभव मन को भयाक्रांत कर देते हैं.  झीलों की नगरी कहे जाने वाले भोपाल में पानी के लिये लोगों का पानी उतरता हुआ देखा जा सकता है. पानी के लिये खून बहाने की घटना से अखबार रंगे होते हैं. मामूली सिर-फुटौव्वल और झूमा-झटकी तो पनघट की