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मार्च 5, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक धर्म की बिटिया

मनोज कुमार     बिटिया हो जाना ही किसी बेटी का धर्म है. बिटिया का एक ही धर्म होता है बिटिया हो जाना. बिटिया का विभिन्न धर्म नहीं होता, उसकी कोई जात या वर्ग भी नहीं होता, वह एक मायने में अमीर या गरीब भी नहीं होती है. बिटिया, सिर्फ और सिर्फ बिटिया ही होती है. हिन्दू परिवारों में पैदा हुई बेटियों को भी पराया होना होता है तो मुस्लिम, सिक्ख और इसाई परिवार भी इसी परम्परा का निर्वाह करते हैं. बेटियों को लेकर इनमें से किसी का भी धर्म और वर्ग का चरित्र अलग नहीं है. बिटिया को लेकर सबकी दृष्टि एक सी है और वह दृष्टि है बिटिया पराया धन है. यहां तक कि बिटिया को लेकर आलीशान कोठी में रहने वाले धन्ना सेठ जो सोचता है, वही सोच एक आम आदमी के मन की भी होती है. संसार के निर्माण के साथ ही बेटी चीख रही है, चिल्ला रही है कि वह एक वस्तु नहीं है. वह धन भी नहीं है और न ही सम्पत्ति लेकिन परम्परा के खूंटे से बंधी बिटिया एक सोची-समझी साजिश के तहत पराया धन बना दी गई.     अभी रेल का सफर करते समय इस बात का अनुभव हुआ कि बिटिया का कोई धर्म नहीं होता है. मैंने 14 घंटे के सफर में इस बात की तलाश करता रहा कि किसी एक बि