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अप्रैल 10, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैं ककहरा सीख रहा था, वो प्रिंसीपल थे..

समय अपनी रफ्त्तार से गुजरता चला जाता है... एक पुरानी यादें शेयर कर रहा हूँ  मैं ककहरा सीख रहा था, वो प्रिंसीपल थे.. मनोज कुमार        मैं उन दिनों पत्रकारिता का ककहरा सीख रहा था. और कहना ना होगा कि रमेशजी इस स्कूल के प्रिंसीपल हो चले थे. यह बात आजकल की नहीं बल्कि 30 बरस पुरानी है. बात है साल 87 की. मई के आखिरी हफ्ते के दिन थे. मैं रायपुर से भोपाल पीटीआई एवं देशबन्धु के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे हिन्दी पत्रकारिता प्रशिक्षण कार्यशाला में हिस्सेदारी करने के लिए भोपाल आया था. यह वह समय था जब भोपाल कहने भर से यहां आने की ललक जाग उठती थी. भोपाल तब मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़ की भी राजधानी थी. आज जो भौगोलिक बंटवारा दोनों राज्यों के बीच हुआ है, तब दोनों में एका था. ऐसे में रायपुर एक कस्बे की तरह था और राजधानी हमारे लिए सपने की नगरी. खैर, रमेशजी आरंभ से मेहमाननवाज थे. सो इस पत्रकारिता प्रशिक्षण में हिस्सेदारी करने आए मुझ जैसे नये-नवेले के साथ वरिष्ठों को उन्होंने रात में भोजन पर आमंत्रित किया. रमेशजी से मेरी यह पहली मुलाकात थी. कुछ बातें हुई लेकिन ऐसी आत्मीयता नहीं बनी कि मैं उनक