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अक्तूबर 29, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उधार के सपने

मनोज कुमार बैंक के भीतर जाना मेरे लिए आसान नहीं होता है। एक साहस का काम है और साहस जुटाकर जैसे ही मैंने बैेंक के दरवाजे पर पैर रखा, वहां कागज पर छपी इबारत सहसा मेरा ध्यान खींचकर ले गई। ‘सपने पूरे करें, किश्तों में मोबाइल लें।’ यानि दूसरे के महंगे मोबाइल की ओर ताकने की जरूरत नहीं। कर्ज देेने वाली इस इबारत में लिखा था कि आप किश्तों में पचास हजार रुपये कीमत की मोबाइल की खरीददारी कर सकते हैं। दीवार पर लगी इबारत ने मुझे भीतर तक हिला दिया था। बेटी के ब्याह के लिए पिता को कर्जदार होते देखा है, खेतों में फसलों के खराब हो जाने से किसानों को कर्जदार होते देखा है, कारोबार बढ़ाने के लिए कर्जदार होते देखा है और यह भी देखा है कि इसमें सबने अपनी सांसों की कीमत पर कर्ज लिया था। कुछ की सांसें टूट गई कर्ज चुकाते चुकाते तो कुछ कर्ज चुकाने के फेर में बिस्तर पकड़ लिया। शायद कर्ज का फर्ज है कि वह आपकी जिंदगी में जोंक की चिपक जाए और खून की आखिरी बूंद भी निचोड़ ले। कर्जदार होना कितना भयावह है और इसी अनुभव के साथ पुराने लोग कहते थे कि एक रोटी कम खा लो लेकिन कर्ज मत लो। ये वही लोग हैं कर्ज लेने वालों के ल