मनोज कुमार समाज में जब कभी सहिष्णुता की चर्चा चलेगी तो सहिष्णुता के मुद्दे पर मीडिया का मकबूल चेहरा ही नुमाया होगा. मीडिया का जन्म सहिष्णुता की गोद में हुआ और वह सहिष्णुता की घुट्टी पीकर पला-बढ़ा. शायद यही कारण है कि जब समाज के चार स्तंभों का जिक्र होता है तो मीडिया को एक स्तंभ माना गया है. समाज को इस बात का इल्म था कि यह एक ऐसा माध्यम है जो कभी असहिष्णु हो नहीं सकता. मीडिया की सहिष्णुता का परिचय आप को हर पल मिलेगा. एक व्यवस्था का मारा हो या व्यवस्था जिसके हाथों में हो, वह सबसे पहले मीडिया के पास पहुंच कर अपनी बात रखता है. मीडिया ने अपने जन्म से कभी न्यायाधीश की भूमिका नहीं निभायी लेकिन न्याय और अन्याय, सुविधा और सुरक्षा, समाज में शुचिता और देशभक्ति के लिए हमारे एक ऐसे पुल की भांति खड़ा रहा जो हमेशा से निर्विकार है, निरपेक्ष है और स्वार्थहीन. यह गुण किसी भी असहिष्णु व्यक्ति, संस्था या पेशे में नहीं होगा. इस मायने में मीडिया हर कसौटी पर खरा उतरता है और अपनी सहिष्णुता के गुण से ही अपनी पहचान बनाये रखता है. मीडिया की सहिष्णुता के गुण को समझने के लिए थोड़ा विस्तार की जरूरत होग...
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