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अगस्त 14, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुफ्तखोरी से मुक्ति का संकल्प लेने का वक्त

मनोज कुमार हर बार की तरह एक बार फिर हम स्वाधीनता पर्व मनाने जा रहे हैं. हर बार की तरह हम सबकी जुबान पर शिकायत होगी कि आजादी के 70 सालों के बाद भी हम विकास नहीं कर पाये. कुछ लोगों की शिकायतों का दौर यह होता है कि इससे अच्छा तो अंग्रेजों का शासन था. यह समझ पाना मुश्किल है कि क्या इन 70 सालों में भारत ने विकास नहीं किया? क्या विश्व मंच पर भारत की उपस्थिति नहीं दिखती है? क्या भारत ने स्वयं को महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में सफलता प्राप्त नहीं की है? इन सवालों का जवाब हां में होगा तो फिर विकास का पैमाना क्या हो? सन् 1947 से लेकर 2017 तक का जब हम आंकलन करते हैं तो पाते हैं कि ऐसा कोई सेक्टर नहीं है जहां भारत ने कामयाबी के झंडे नहीं फहराया हो लेकिन भारतीय मानसिकता हमेशा से शिकायत की रही है और हम तकियाकलाम की तरह विकास नहीं होने की बात को कहते रहे हैं. यह शिकायत की मानसिकता हमारी ऐसी बन चुकी है कि हम अपने देश पर अभिमान कर नहीं पाते हैं. हम अपने देश की खूबियों को भी लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं. दरअसल, भारत जैसे महादेश में लोगों ने अपने अपने टापू सरीखे घर और मन बना लिए हैं, जहां वे