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मार्च 29, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
आरक्षण की राजनीति का शिकार मत बनाओ  -मनोज कुमार       भोपाल इन दिनों सिनेमा से सम्मोहित है। सिनेमा एक ऐसा सम्मोहन है जिससे बंधा हुआ हर कोई चला आता है। भोपाल को फिल्मसिटी बनाने की बात राजनीतिक गलियारे में दो दशक से ज्यादा समय से चल रही है किन्तु अब तक बातें ही बातें होती रही। राज्य के संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के प्रयासों से बात अब निकल कर कागज पर आ गयी है और ज्यादा देर नहीं हुई तो हकीकत में फिल्म सिटी अस्तित्व में आ जाएगी। हाल फिलहाल फिल्म सिटी का मामला संस्कृति विभाग के जिम्मे है। फिल्मसिटी का बन जाना भोपाल के लिये अच्छा ही होगा। हुनरमंद लोगों से भोपाल बल्कि समूचा मध्यप्रदेश गौरवान्वित होता रहा है। फिल्मसिटी बन जाने से हुनरमंदों को काम भी मिलेगा और सम्मान भी। हालांकि यह सब बातें फिलवक्त कल्पना की है। फिलवक्त कल्पना की बातें इसलिये कि फिल्म अभी थियेटर पर चढ़ी नहीं है और टिकट की ब्लेक शुरू हो गई है। जी हां, जिन दो फिल्मों को देखकर हम शान से कहते हैं देखो वो मेरा भोपाल, उसी फिल्म के चंद सेकंड के दृश्य में लगभग एक्स्ट्रा की भूमिका में हमारे अपने मंजे हुए कलाकारों को देखकर भविष्य