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बाल विवाह : चुनौती और सफलता

-अनामिका भारतीय समाज संस्कारों का समाज है. जन्म से लेकर मृत्यु तक सिलसिले से विधान हैं. यह सारे विधान वैज्ञानिक संबद्धता एवं मनोविज्ञान पर आधारित है. जैसे-जैसे हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे कामयाबी के साथ चुनौतियां हमारे समक्ष बड़ी से बड़ी होती जा रही हैं. यह एक सच है तो एक सच यह भी है कि इन संस्कारों में कई ऐसी रीति-रिवाज और परम्परा में कुछ ऐसी भी हैं जो समाज के समग्र विकास को रोकती हैं. इनमें से एक है बाल विवाह. वह एक समय था जब बाल विवाह की अनिवार्यता रही होगी लेकिन आज के समय में बाल विवाह लड़कियों के लिए जंजीर की तरह है. समय के साथ कदमताल करती लड़कियां अंतरिक्ष में जा रही हैं. सत्ता और शासन सम्हाल रही हैं. खेल और सिनेमा के मैदान में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. ऐसे में उन्हें बाल विवाह के बंधन में बांध देना अनुचित ही नहीं, गैर-कानूनी भी है.  बाल विवाह का सबसे बड़ा दोष अशिक्षा है. विकास के तमाम दावे-प्रतिदावे के बाद भी हर वर्ष बड़ी संख्या में बाल विवाह होने की सूचना मिलती है. यह दुर्भाग्यजनक है और यह दुर्भाग्य केवल ग्रामीण समाज के हिस्से में नहीं है बल्कि श