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अगस्त 3, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हाय रे, हॉकी, यही है तेरी किस्मत

मनोज कुमार बापू और हॉकी का हाल एक जैसा हो गया है। सूचना के अधिकार के तहत कुछ महीने पहले जानकारी मांगी गयी थी कि किस कानून के तहत महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की पदवी दी गयी है तो भारत सरकार ने खुलासा किया था कि महात्मा गांधी को इस तरह की कोई पदवी नहीं दी गई है। अब हॉकी को लेकर भारत सरकार के मंत्रालय ने हॉकी को राष्ट्रीय खेल मानने से मना कर दिया है। यह खुलासा भी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी में हुआ है। हॉकी को भारत में किसी खेल की तरह नहीं लिया जाता है बल्कि इस खेल के साथ हमारी अस्मिता को जोड़ कर देखा जाता है। बिलकुल उसी तरह जिस तरह कोई कानून महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता माने या न माने भारत और पूरा संसार उन्हें राष्ट्रपिता कहने में स्वयं गर्व की अनुभूति करता है। स्वाधीनता के छह दषक गुजर जाने के बाद आज जब हमंे यह पता चलता है कि हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा ही नहीं है तो यह हम सबके लिये षर्मनाक है। दुर्भाग्यजनक है कि छह दषक गुजर जाने के बाद भी हम हॉकी को कानूनन राष्ट्रीय खेल घोषित नहीं कर पाये। खेलों के विकास के लिये राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक लगातार कोषिषें हो र