कुमार जीत हमेशा सकुन देती है. यह जीत व्यक्ति की हो या संस्था की और बात जब राजनीति की हो तो यह और भी अर्थपूर्ण हो जाता है. कांग्रेस की कर्नाटक में बम्पर जीत से कांग्रेसजनों का उल्लासित होना लाजिमी है. यह इसलिए भी कि लगातार पराजय के कारण कांग्रेस पार्टी के भीतर निराशा पनपने लगी थी और यह माहौल बनाया जा रहा था कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पराभव के दौर से गुजर रही है. राजनीति में यह सब होना कोई अनोखा नहीं है. कल हम शीर्ष पर थे तो आज वो हैं और कल कोई होगा. ये पब्लिक है सब जानती है कि बात यहीं चरितार्थ होती है. कांग्रेस के खुश होने के अपने कारण हैं तो भाजपा को स्वयं की समीक्षा करने के लिए एक अवसर है. आने वाले समय में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और इन राज्यों में भाजपा की परीक्षा होगी तो कांग्रेस को भी इम्तहान से गुजरना होगा. एक जीत के बाद जश्र में डूब जाना कांग्रेस के लिए कतई हितकारी नहीं होगा. कांग्रेस के लिए कर्नाटक एक अवसर बनकर आया है और इस अवसर को आगे उसे भुनाने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा. कांग्रेस की कर्नाटक में बड़ी जीत के बाद यह माहौल बनाया जा रहा है
मनोज कुमार इंदौर में मौत की बावड़ी से धडक़न टूटने की गिनती हो रही है। सबके अपने सूत्र, सबके अपने आंकड़ेें। पलकें नम हो गई हैं। हर कोई इस विपदा से दुखी और बेबस है। खबरों की फेहरिस्त है। कोई शासन-प्रशासन को गरियाने में लगा है तो कोई इस बात की तह तक जाने की जल्दबाजी में है कि हादसा हुआ कैसे? सब खबरों और हेडलाइंस तक अपने आपको सीमित रखे हुए हैं। इस हादसे में अगर प्रशासन नाकाम है तो यह कौन सी नयी बात है? राजनेता हादसे को भुनाने में लग गए तो इसमें हैरानी कैसी? यह ना तो पहली दफा हो रहा है और ना आखिरी दफा है। प्रशासन का निकम्मापन हमेशा और हर हादसे में उजागर होता रहा है और शायद आगे भी उसका वही रवैया रहे। इसमें सयापा करने की कोई बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है। जिंदगी को रूसवा करने और मौत को रुपयों से तौलने की रवायत भी पुरानी हो चुकी है। रुपये नम आंखों में खुशी ला सकते तो क्या बात थी कि हर रईस मौत से मालामाल हो जाता। कभी उन घरों में आज से चार-छह हफ्ते बाद जाकर पूछे और देखें उन बच्चों को जिनकी मां ने उनके सामने दम तोड़ दिया या पिता का साया सिर से उठ गया। किसी का पति चला गया तो किसी का घर सुना हो गया। थोड