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वो अढाई साल और भोपाल का गौरव दिवस

मनोज कुमार        15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश आजाद हवा में सांस ले रहा था तब भोपाल की धडक़न थरथरा रही थी. भोपाल के वाशिंदों को एक-दो दिन नहीं, पूरे अढाई साल आजाद हवा में सांस लेने के लिए इंतजार करना पड़ा था. आखिर एक लम्बे इंतजार के बाद हौले से आजादी ने भोपाल के दरवाजे पर दस्तक दी. ये अढाई साल भोपालियों के लिए संघर्ष के उन दिनों से ज्यादा भारी थे जो उन्होंने फिरंगियों से लिये थे. इस बार लड़ाई घर में थी. वह तो भला हो उस लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जिन्होंने उन नापाक मंसूबों को धराशायी कर दिया. वे ऐसा नहीं करते तो आज भोपाल, भोपाल नजर नहीं आता और गौरव दिवस तो छोडिय़े, मेरा भोपाल कहने लायक भी नहीं रहते . आज भोपाल का गौरव दिवस मनाते समय उस घाव का दर्द महसूस करना इसलिए जरूरी हो जाता है कि हमारी नयी पीढ़ी जान सके कि गौरव ऐसे ही नहीं पाया जाता है. 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से देश को भले ही आजादी मिली हो, लेकिन, भोपाल के लोगों ढाई साल तक गुलाम ही महसूस करते रहे। 15 अगस्त 1947 के बाद भी यहां नबावों का शासन था। इसके लिए ढाई साल तक संघर्ष हुआ। खास बात यह भी है कि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भा