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अक्तूबर 16, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवान की याद

मनोज कुमार जब कभी हम पर मुसीबत टूटती है तो हमें सबसे पहले भगवान याद आते हैं। ऐसा लगता है कि भगवान हमारी सारी पीड़ा दूर कर देंगे। भगवान के स्मरण से पीड़ा भले ही दूर न हो किन्तु पीड़ा सहने की षक्ति मिल ही जाती है। भगवान की तरह ही स्वतंत्र भारत में गांधीजी को पूछा और पूजा जा रहा है। हर किसी को गांधी का रास्ता मंजिल पा लेने का सबसे सरल रास्ता लगता है। अन्ना हजारे ने भी गांधी को सामने रखकर भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वयं को प्रस्तुत किया था। आरंभिक दिनों में देषवासियों को उनका समर्थन भी मिला लेकिन आहिस्ता आहिस्ता अन्ना का जादू खत्म होने लगा और एक समय ऐसा भी आया जब अन्ना को अपना आंदोलन खत्म करना पड़ा। अन्ना के लिये यह आसान था कि वे आंदोलन को वापस ले लें। अन्ना की टीम के लिये यह मुष्किल था कि वे आंदोलन वापस लें क्यांे कि उन्हें पता था कि जब तक वे लाठी भांजते रहेंगे, तब तक ही उनकी पूछ बनी रहेगी। षायद यही कारण है कि इनका आंदोलन तो षुरू हुआ था सत्याग्रह से और पहुंच गये कटी बिजली का तार जोड़ने, पहुंच गये मंत्री सलमान खुर्षीद के कारनामे बाहर लाने के लिये। लोकपाल की बात हाषिये पर चली गयी। अब लोकपा