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अप्रैल 14, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

21 अप्रेल अक्षय तृतीया पर विशेष

रूढिय़ों से मुक्त करेंगी हमारी बेटियां   -मनोज कुमार भारतीय उत्सव एवं तीज-त्योहारों में एक प्रमुख और शुभ दिन यूं तो अक्षय तृतीया को माना गया है किन्तु यह दिन भारतीय समाज के लिये कलंक का दिन भी होता है जब सैकड़ों की संख्या में दुधमुंहे बच्चों को शादी के बंधन में बांध दिया जाता है. समय परिवर्तन के साथ सोच में बदलाव की अपेक्षा किया जाना सहज और सरल है लेकिन व्यवहार रूप में यह कठिन भी. बाल विवाह नियंत्रण के लिये कानून है लेकिन कानून से समाज में कोई खौफ उत्पन्न हुआ हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता है. बीते एक दशक में समाज की सोच में परिवर्तन दिखने लगा है तो यह बदलाव राज्य सरकारों द्वारा महिलाओं के हित में क्रियान्वित की जा रही वह विविध योजनायें हैं. यह योजनायें महिलाओं में शिक्षा से लेकर रोजगार तक के अवसर दे रही हैं. इसके पहले समाज के समक्ष बेटियों के लिये ऐसा कोई ठोस विकल्प नहीं था, सो बाल विवाह कर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना ही एक रास्ता था लेकिन अब पूरे देश में बेटियों के लिये आसमान खुला है. वे जहां तक चाहें, उड़ सकती हैं, खिलखिला सकती हैं. शादी की बेडिय़ां टूटने लगी हैं.  भारतीय समाज म