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जनवरी 17, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन की बंद खिडक़ी

मनोज कुमार मेरी सवालिया बेटी के आज एक और सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. उसका मासूम सा सवाल था कि क्या चाय पीने से दिल की दूरियां खत्म हो जाती है? सवाल गहरा था और एकाएक जवाब देना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल था लेकिन मेरा संकट यह था कि तत्काल जवाब नहीं दिया तो उसके मन में जाने कौन सा संदेह घर कर जाए और अपने आगे के दिनों में वह समाज में वैसा ही बर्ताव करने लगे, जैसा कि टेलीविजन के विज्ञापन को देखने के बाद उसके मन में आया था. बात शुरू हुई थी टेलीविजन के पर्दे पर प्रसारित हो रहे एक चायपत्ती कम्पनी के विज्ञापन से.चाय में मिठास होती है और लेकिन इस विज्ञापन की शुरूआत कडुवाहट से होती है. विज्ञापन के आरंभ में पुरुष अपनी पड़ोसी स्त्री के घर चाय पीने से पहले इसलिए इंकार कर देता है कि वह उनके सम्प्रदाय की नहीं है. इस तरह विद्वेष से विज्ञापन की शुरूआत होती है. हालांकि पत्नी के आग्रह पर वह लगभग बेबसी में उस स्त्री के  घर चाय पीने चला जाता है लेकिन मन उसका अभी भी साफ नहीं है.चाय का पहला प्याला पीने के बाद उसका मन खुश हो जाता है और वह उसी स्त्री से एक और चाय के प्याले का आग्रह करता है जिसके प्रत