सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल 12, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्याऊ का उद्घाटन उत्सव

मनोज कुमार अखबार रोज एक न एक रोचक खबर अपने साथ लाती है. यह खबर जितनी रोचक होती है, उससे कहीं ज्यादा सोचने पर विवश करती है और लगता है कि हम कहां जा रहे हैं? आज एक ऐसी ही खबर पर नजर पड़ी. खबर में लिखा था कि राज्य के एक बड़े मंत्री प्याऊ का उद्घाटन करेंगे. खबर पढक़र चेहरे पर बरबस मुस्कान तैर गयी. समझ में नहीं आया कि इस खबर को रोचक खबर की श्रेणी में रखूं या विचार करने की. पहली नजर में तो यह खबर रोचक थी लेकिन इससे कहीं आगे विचार की. प्याऊ का शुरू होना हमारे लिये कोई उत्सव या जश्र नहीं है और न ही कोई शोशेबाजी. अपितु प्याऊ एक परम्परा है, भारतीय संस्कृति का अंग है एवं जीवन दर्शन है. मानव के प्रति मानव समाज की चिंता का सबब प्याऊ है. यह एक संकल्प भी है मानव समाज का लेकिन आज के दौर में संकल्प और संस्कृति ने उत्सव का स्थान ले लिया है. जिस तरह खबर में मंत्रीजी द्वारा प्याऊ के उदघाटन करने की सूचना दी गई है तो निश्चित रूप से मंत्रीजी लाव-लश्कर के साथ उद्घाटन के लिये पहुंचेंगे. इस लाव-लश्कर पर जो खर्च होगा और प्याऊ की स्थापना पर जो खर्च होगा, उसका फरक जमीन और आसमान की दूरी जितना ही होगा. विचार