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फ़रवरी 5, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

‘समागम’ का सिनेमा उत्सव

  ‘समागम’ : 23वें वर्ष का पहला अंक आज स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर हमारे बीच नहीं हैं. उनकी आवाज आज हमारे साथ होने का अहसास कराती है. समागम टोली लताजी के प्रति अपनी भावांजलि व्यक्त करता है. भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष का जश्र मनाते हुए ‘समागम’ ने विशेष अंक का प्रकाशन किया था. अब समय है इस सौ साल के बाद गुजरे एक दशक को जानने और समझने का. कोविड-19 का हमला नहीं होता तो सिनेमा में कुछ थोड़ा-बहुत बदलाव आता लेकिन कोविड-19 ने सिनेमा की सूरत बदल दी है. टेक्रालॉजी समृद्ध हुई और सिनेमा देखना आसान लेकिन भाषा को लेकर गिरावट भी साफ देख रहे हैं. बाहुबली से पठान तक की यात्रा का लेखा-जोखा करने का विनम्र प्रयास.

दूध की बढ़ती कीमतें नहीं, हमारी चिंता शेयर बाजार है

मनोज कुमार दूध की बढ़ती कीमतें अब हमें नहीं डराती हैं। इस बढ़ोत्तरी पर हम कोई विमर्श नहीं करते हैं। हमारा सारा विमर्श का केन्द्र शेयर बाजार है। कौन सा पूंजीपति डूब रहा है, इस पर हम चिंता में घुले जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि शेयर मार्केट की चिंता नहीं करना चाहिए लेकिन पहले तय तो हो कि जीवन के लिए दूध जरूरी है कि शेयर? क्या हम मान लें कि एक साथ तीन रुपये दूध की कीमत में बढ़ोत्तरी कोई माथे पर सलवटें नहीं डालती हैं? क्या हम मान लें कि रोजमर्रा की महंगाई से दो-चार होने को हमने स्वीकार कर लिया है? क्या हम मान लें कि दूध से ज्यादा जरूरी है कि शेयर मार्केट उठ रहा है या गिर रहा है? शायद इस समय का सच यही है कि हमने दूध, सब्जी, किराना और इसी तरह की दिनचर्या की जरूरी चीजों की महंगाई को महंगाई नहीं मान रहे हैं। बढ़ती महंगाई के लिए सत्ता और शासन को हम दोषी बताकर किनारा कर लेते हैं लेकिन जिन्हें शायद कल सत्ता और शासन सम्हालने का अवसर मिले, वे भी खामोश हैं। उनकी चिंता में भी दूध नहीं, शेयर मार्केट की मंदी और उछाल है। हिडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद कारोबारी खानदान की चूलें क्या हिली, पूरा समाज चिंता में ड...