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मार्च 9, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कातिल सावन और मार्च

मनोज कुमार सावन और मार्च का महीना दोनों ही कातिल होता है. सावन नायिका के तन और मन को जलाता है तो मार्च का महीना लोगों की जेब को जला डालता है. सावन जाते जाते नायिका निढाल हो जाती है तो मार्च गुजरते ही नायक भी लगभग ठंडा सा पड़ जाता है...  इस गर्माते मार्च के महीने में जब यह गीत याद आ जाये तो ऐसा लगता है कि किसी ने जले पर नमक छिडक़ दिया है. तेरी दो टकियों की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाये... यह गाना तो उन लोगों को जरूर याद होगा जो मेरी उम्र के होंगे... उनकी बात नहीं करता जिसमें नायिका मिस कॉल से पट जाने की बात कहती हो... खैर, यह बड़ा उलझाव वाला मामला है... अभी तो हम सावन की बात कर लें...अब आपके दिमाग में यह बात आयेगी कि ये आदमी बौरा गया है... अच्छा खासा बासंती मौसम है... होली आने को है... रंगों का गीत गुनगुनाने के बजाय सावन की बातें कर रहा है... आप लोग ठीक सोच रहे हैं... मेरा सावन तो कब का बीत गया... सही मायने में तो होली के लायक भी नहीं बचा... अब जो बचा है वह मार्च महीने का हिसाब किताब... इससे कोई नहीं बच पाया है... नायिका के लिये सावन लाखों का है तो नायक हों या न हो... हर आदमी