मार्च : पहली बोलती फिल्म आलम आरा के बरक्स -मनोज कुमार हर दिन गुजरने के साथ तारीख बदल जाती है. यह क्रम हमारे जीवन में नित्य चलता रहता है किन्तु कुछ तारीखें बेमिसाल होती हैं. बेमिसाल होने के कारण इन तारीखों को हम शिद्दत से याद करते हैं. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी कई तारीखें हैं जो हमें रोमांचित करती हैं तो आपातकाल की वह तारीख भी हमें भूलने नहीं देती कि किस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकेल डाला गया था. इन सबसे इतर यहां पर हम उन बेमिसाल तारीखों का जिक्र कर रहे हैं जिन तारीखों ने हमारे सांस्कृतिक वैभव को लगातार उन्नत किया है. दादा साहेब फाल्के ने भारत में सिनेमा की शुरूआत कर एक नई विधा को जन्म दिया. आरंभिक दिनों में सिनेमा में काम करना बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था किन्तु सौ साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद सिनेमा की समाज में स्वीकार्यता न केवल कला विधा के रूप में हुई बल्कि रोजगार की दृष्टि से भी इसे मंजूर किया गया. दादा साहेब फाल्के ने सफर मूक सिनेमा से भारत में इसकी शुरूआत की थी लेकिन थोड़े समय में ही मूक सिनेमा को आवाज मिल गई. इस कड़ी में पहली बोलती फि...
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