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जून 2, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

kuch alg

ईमानदारी पर भारी बेईमानी मनोज कुमार आज दो खबरें हैं जिसमें पहली खबर मायने रखती है। खबर एक रिक्षा चालक को लेकर है। किसी सवारी ने रिक्षे में पचास हजार रुपये का बैग भूल आया था। रिक्षे वाले ने ईमानदारी का परिचय देते हुए उसे लौटा दिया। निष्चित रूप से इस खबर को जगह मिलनी चाहिए थी सो मिली किन्तु ठीक इसके नीचे एक खबर और लगी है कि पचास करोड़ के आसामी कार चोर थे। इस खबर को उतनी ही जगह दी गई है जितना कि रिक्षे वाले की ईमानदारी की खबर को। सवाल यह है कि ईमानदारी पर भारी पड़ती बेईमानी की खबर क्या इतना वजूद रखती है अथवा कि ईमानदारी और बेईमानी को एक तराजू पर तौला जाना चाहिए?     राय अलग अलग हो सकती है किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि खबरें दोनो महत्वपूर्ण हैं किन्तु रिक्षा चालक की खबर ज्यादा मायने रखती है और कारचोरों की खबर कोई खास मायने की नहीं है। दूसरी खबर इस मायने में बेकार है अथवा अर्थहीन है कि इस समय समाज में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रश्टाचार का है और ऐसे में ईमानदारी की कोई खबर सामने आये तो इसे बड़ी खबर माना जाना चाहिए। औसतन दस खबरों में छह तो बेईमानी की होती हैं। बेईमानी के मुद्दे और तथ