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जनवरी 22, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Mera Bhopal

ग्रीन नहीं, गरीब सिटी बोलिये.... मनोज कुमार ये मेरे शहर को क्या हो गया है? विकास के नाम पर सरेआम मेरे शहर को उजाड़ा जा रहा है। जिन हजारों लोगों की रोजी प्रदूषण से शहर को बचाने के नाम पर छीन ली गयी उन भटसुअर के चालक मालिक भोपाल के पहचान थे बिलकुल वैसे ही जैसे आज काटे जा रहे हरे-भरे पेड़। हम सब खामोश हैं। मिटती हरियाली में हमें विकास दिख रहा है। किसी न किसी रूप में हम सब उन राजनेताओं और नौकरशाहों के साथ खड़े दिख रहे हैं जिनके लिये कल की मुसीबत आज विकास की बुनियाद है। कल्पना कीजिये कि शरीर को जला देने वाली गर्मी में भी भोपाल की सड़कों में ठंडक का अहसास होता था। बारिश में बचने के लिये किसी पेड़ की छांह तले आप खड़े हो जाते थे। जब ये पेड़ ही नहीं बचेंगे तो कौन आपके मन को शीतल करेगा और कौन बरसते पानी से भीगने से आपको बचाएगा। बड़ी खूबसूरत बसें शहर का सीना चीरकर बेदम गति से भाग रही हैं। भला लगता है इन बसों को देखना। इनमे सवारी करना लेकिन जब प्रदूषित हवाएं हम पर सवार हो जाएंगी। बीमारियां जब हमारे गले पड़ जाएंगी तब शायद भोपाल की याद आए। उस भोपाल की जिसे आज दुनिया ग्रीन सिटी के नाम से जानती है। संभव है