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नवंबर 28, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

टंट्या मामा को सलामी देने आज भी ट्रेन के पहिये थम जाते हैं

मनोज कुमार स्वाधीनता के सात दशक बाद भी किसी योद्धा को सलामी देने के लिए गुजरने वाले ट्रेन के पहिये कुछ समय के लिए थम जाए, यह जानकर मन रोमांचित हो जाता है। यह शायद उन लोगों के लिए एक पहेली के समान भी हो जिन्होंने किताबों में तो स्वाधीनता संग्राम का इतिहास पढ़ा है लेकिन इतिहास आज भी लिखा जा रहा है, यह अपने किस्म का अलग अनुभव है। लेकिन सच है कि अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने वाले जनजाति वीर योद्धा टंट्या मामा की वीरता को सलाम करने के लिए पातालपानी रेल्वे स्टेशन से गुजरने वाली हर रेलगाड़ी के पहिये कुछ समय के लिए आज भी थम जाता है। जनपदीय लोक नायकों का स्मरण तो हम समय-समय पर करते हैं लेकिन वीर योद्धा टंट्या मामा को प्रतिदिन स्मरण करने का यह सिलसिला कभी थमा नहीं, कभी रूका नहीं। अब जब हम आजादी के 75वां वर्ष का उत्सव मना रहे हैं तब ऐसे अनेक प्रसंग से हमारी नयी पीढ़ी को रूबरू कराने का स्वर्णिम अवसर है। मध्यप्रदेश ऐसे जाने-अनजाने सभी वीर योद्धाओं का स्मरण कर आजादी के 75वें वर्ष को यादगार बना रहा है। स्वाधीनता का 75वां वर्ष पूरे राष्ट्र का उत्सव है। एक ऐसा उत्सव जो हर पल इस बात का स्मरण कराता है क