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अगस्त 19, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नए मिजाज का शहर

मनोज कुमार यायावरी के अपने मजे होते हैं और मजे के साथ साथ कुछ अनुभव भी. मेरा यकीन यायावरी पत्रकारिता में रहा है. यायावरी का अर्थ गांव गांव, देश देश घूूमना मात्र नहीं है बल्कि यायावरी अपने शहर में भी की जा सकती है. मेरा अपना भोपाल शहर. ठंडे मिजाज का शहर, हमदर्द शहर. एक मस्ती और रवानगी जिस शहर के तासीर में हो, उस शहर में जीने का मजा ही कुछ और होता है. बड़े तालाब में हिल्लोरे मारती लहरें किसी को दीवाना बनाने के लिए काफी है तो संगीत की सुर-लहरियों में खो जाने के लिए इसी तालाब के थोड़े करीब से बसा कला गृह भारत भवन रोज ब रोज आपको बुलाता है. सुस्त शहर की फब्तियां भी इस शहर पर लोग दागते रहे हैं. जिन्हें पटियों पर बैठकर शतरंज खेलने का सउर ना हो, वह क्या जाने इस सुस्ती की मस्ती. यह वही पटिया है जहां भोपाल की गलियों से लेकर अमेरिका तक की चरचा भोपाली कर डालते हैं. पटिये की राजनीति ने किन किन को बुलंदियों तक पहुंचा दिया, इसकी खबर तो इतिहास ही रखता है. मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इससे किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, परंतु चिंता सब रखते हैं कि इस बार मुख्यमंत्री की गद्दी पर कौन बैठेगा. मुख्यमं