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जून 22, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पंचायतों का अस्तित्व

मनोज कुमार मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था में सरपंच की कुर्सी को नीलाम करने की कई खबरें पहले भी प्रकाश में आती रही हैं और इन खबरों ने पंचायतीराज व्यवस्था की कामयाबी पर सवालिया निशान लगाया है. हाल ही में आयी एक ताजा खबर ने तो पंचायतीराज व्यवस्था को ही दांव पर लगा दिया है. खबर है कि एक महिला सरपंच ने अपने पद को पॉवर ऑफ अटार्नी से दूसरे को हस्तांतरित कर दिया है. इसके पीछे महिला का तर्क है कि वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, इसलिए उसने ऐसा किया. अपने आपमें चौंकाने वाला यह मामला यूं ही दबा रहता, यदि कोई चौकस पंचायत सचिव नहीं आता तो. नए पंचायत सचिव के आने से मामले का खुलासा हुआ. खबर के बाहर आने के बाद कानून क्या करता है और सरकार क्या करेगी, यह व्यवस्था का मामला है लेकिन पंचायतों को इस तरह दांव पर लगाया जा रहा है, यह बात तो साफ हो गई है जिस पर आप गर्व तो नहीं कर सकते हैं. सरपंच का चयन दया से नहीं बल्कि मतदाताओं के निर्णय से होता है और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. इस महिला सरपंच ने एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया है. महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज का सुंदर सा सपना देखा था. तब श