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जनवरी 14, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
  एक कोशिश का नाम है ‘समागम’ 22 वर्ष पहले ‘समागम’ का प्रकाशन आरंभ किया था. तब मन में कुछ अलग करने का विचार था. पत्रिकाओं की भीड़ तब भी थी और अब भी है. ऐसे में कुछ नया क्या हो, यह दिमाग को मथ रहा था. ऐसे में खयाल आया कि क्यों ना मीडिया रिसर्च को लेकर कोई कार्य आरंभ किया जाए. अकादमिक गतिविधियों से जुडऩे के बाद मेरे विचार को विस्तार मिला. आज 22 वर्ष बाद ‘समागम’ का जो स्वरूप आप देख रहे हैं, वह अपने शुरूआती दिनों में नहीं था लेकिन कोशिश को लोगों ने हौसला दिया. एक चुनौती यह भी थी कि प्रत्येक माह नवीन सामग्री कैसे जुटायी जाएगी? लेकिन यकिन नहीं होता है कि लोगों का स्नेह और सहयोग ने इस संकट को भी दूर कर दिया. आज मोटेतौर पर देखें तो देशभर के सुप्रतिष्ठित प्राध्यापकों, मीडिया विशेषज्ञ एवं शोधार्थियों की लगभग हजार लोगों का साथ है.  ‘समागम’ से रिसर्च जर्नल ‘समागम’ का सफर भी रोचक रहा है. विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और विद्यार्थियों से चर्चा करते हुए मेरी समझ कुछ विकसित हुई. एक ठेठ जर्नलिस्ट का संपादक बन जाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन एक जर्नलिस्ट का रिसर्च की पत्रिका का एडीटर होना जाना