मनोज कुमार डाक्टर और इंजीनियर की तरह औपचारिक डिग्री अनिवार्य करने के लिये प्रेस कौंसिंल की ओर से एक समिति का गठन कर दिया गया है. समिति तय करेगी कि पत्रकारों की शैक्षिक योग्यता क्या हो. सवाल यह है कि पत्रकारों की शैक्षिक योग्यता तय करने के बजाय उन्हें शिक्षित किया जाये क्योंकि प्रशिक्षण के अभाव में ही पत्रकारिता में नकारात्मकता का प्रभाव बढ़ा है. मुझे स्मरण है कि मैं 11वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद ही पत्रकारिता में आ गया था. तब जो मेरी ट्रेनिंग हुई थी, आज उसी का परिणाम है कि कुछ लिखने और कहने का साहस कर पा रहा हूं. साल 81-82 में पत्रकारिता का ऐसा विस्तार नहीं था, जैसा कि आज हम देख रहे हैं. संचार सुविधाओं के विस्तार का वह नया नया दौर था और समय गुजरने के बाद इन तीस सालों में सबकुछ बदल सा गया है. विस्तार का जो स्वरूप आज हम देख रहे हैं, वह कितना जरूरी है और कितना गैर-जरूरी, इस पर चर्चा अलग से की जा सकती है. फिलवक्त तो मुद्दा यह है कि पत्रकारों की शैक्षिक योग्यता तय करने की जो कवायद शुरू हुई है वह कितना उचित है. काटजू साहब अनुभवी हैं और उन्हें लगता होगा कि पत्रकारों की शैक्षिक योग्यता
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