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मई 2, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रेस दिवस

प्रेस दिवस पर विशेष श्रमजीवी पत्रकार से मीडिया कर्मी का सफर मनोज कुमार स्वतंत्र पत्रकार एवं मीडिया अध्येता मई माह का पहला दिन श्रमजीवियों के नाम से गुजर गया। इस दिन को हम श्रमिक दिवस के नाम से जानते हैं। कभी पत्रकार भी श्रमजीवी कहलाया करते थे और आज यह तखल्लुस केवल कस्बाई पत्रकारों तक सिमट कर रह गया है। अब हम श्रमजीवी नहीं कहलाते हैं, अब हम मीडिया कर्मी हैं बिलकुल वैसे ही जेसे सरकारों ने शिक्षकों को शिक्षाकर्मी बना दिया है। खुद का दिल बहलाने के लिये यह खयाल अच्छा हो सकता है कि पदनाम बदलने से काम पर भला क्या फर्क पड़ता है लेकिन मेरा मानना है कि पदनाम से ही काम पर फर्क पड़ता है। श्रमजीवी कहलाने का अर्थ वे लोग बखूबी जानते हैं, जो आज भी श्रमजीवी बने हुए हैं किन्तु जो लोग मीडिया कर्मी बन गये हैं उन्हें एक श्रमजीवी होने का सुख भला कैसे मिल सकता है। एक श्रमजीवी और एक कर्मचारी के काम में ही नहीं, व्यवहार में भी अंतर होता है। एक कर्मचारी का लक्ष्य और उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक निश्चित कार्य को पूर्ण कर अधिकाधिक पैसा कमाना होता है किन्तु एक श्रमजीवी का अर्थ बहुत विस्तार लिये हुए है। उसका उद्देश्य औ