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अप्रैल 13, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दलित चेतना के प्रेरणास्रोत डॉ. भीमराव अम्बेडकर

मनोज कुमार डॉ. अम्बेडर ने सामाजिक न्याय और सामाजिक विषमताओं के प्रति चेतना उद्वेलित कर एक दिषा देने की पहल सौ वर्ष से कुछ कम साल पहले ही कर दी थी। यह समय था जब भारत पराधीन था। वे यह मानते थे कि दलित समाज की स्वीकार्यता तब संभव होगी जब वह आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर स्वतंत्र होगा। इस सोच के साथ वे दलित समाज को सषक्त और सक्रिय बनाने में जुट गये। उनकी सक्रियता का ही परिणाम था कि भारतीय संविधान निर्मात्री सभा की प्रारूप समिति की अध्यक्षता करने का अवसर मिला और बाद में वे भारत के कानून मंत्री भी बनें। भारतीय संविधान का निर्माण करने वाले डॉ. अम्बेडकर आज न केवल दलित समाज के लिये बल्कि समूचे भारतीय समाज के प्रेरणास्रोत के रूप में याद किये जाते हैं। डॉ. अम्बेडकर स्वयं उस वर्ग के थे, जो सामाजिक अन्याय, कुरूपताओं, विषमताओं और वंचनाओं के भुक्तभोगी थे, और इन्हीं विषमताओं ने उन्हें निरन्तर लड़ने और उन्हें दूर करने की शक्ति दी। अम्बेडकर जीवनभर सामाजिक समरसता की बात करते रहे। वे चाहते थे कि दलित वर्ग को समाज की मुख्यधारा में षामिल किया जाए और उन्हें भी वही अधिकार प्राप्त हों जो समाज की मुख्यधारा के लोगों