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अप्रैल 16, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये तेरा घर…ये मेरा घर…

मनोज कुमार हम बचपन में एक खेल खेला करते थे। कोई हमसे आगे न निकल जाये, इसके लिये हम कहते थे कि तु जितना बलवान है, मैं उससे दस गुना ज्यादा बलवान हूं। साथी संगी कहते कि हम तेरे से दस गुना ज्यादा बलवान हैं तो मैं कहता कि पहले ही कह दिया कि तुमसे दस गुना ज्यादा यानि जितना कहोगे उससे हमेशा यह ज्यादा ही रहेगा। बचपन के इस खेल को आज भोपाल में दुहराते हुए देखने का मौका मिला है। हमारा खेल बचपन का था जिसमें कोई स्वार्थ नहीं था लेकिन भोपाल में इन दिनों जो खेल खेला जा रहा है, वह अपने अपने स्वार्थाें के लिये है। दामुल वाले प्रकाश झा भोपाल में पहली दफा राजनीति की शूटिंग करने आये थे और इसके बाद आरक्षण बना डाला। राजनीति से आरक्षण बनाते समय तक न तो उन्हें भोपाल अपना लगा था और न ही उन्होंने कभी भोपाल को अपना घर कहने की बात की थी। इस बार जब अपनी वो एक नयी फिल्म की शूटिंग के लिये आये हैं और कुछ विवाद सामने आया तो उन्होंने कह दिया कि अब से भोपाल मेरा पहला घर। झा की तर्ज पर साथी कलाकारों ने भी भोपाल को अपना कह दिया। एकाध ने तो भोपाल से पुराना रिश्ता ही ढूंढ़ निकाला। बचपन की यादें ताजा हो गर्इं। प्रकाश झा ने भ