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मई 27, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता से टारगेटेड जर्नलिज्म

-मनोज कुमार ‘ठोंक दो’  पत्रकारिता  का ध्येय वाक्य रहा है और आज मीडिया के दौर में ‘काम लगा दो’ ध्येय वाक्य बन चुका है। ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता से टारगेटेड जर्नलिज्म का यह बदला हुआ स्वरूप हम देख रहे हैं। कदाचित पत्रकारिता से परे हटकर हम प्रोफेशन की तरफ आगे बढ़ चुके हैं जहां उद्देश्य तय है, ध्येय तो गुमनाम हो चुका है। इस बदलाव का परिणाम है कि हम अपने ही देश मेें अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम भूल जाते हैं कि पराधीन भारत में हमें अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता गोरे शासकों ने नहीं दी थी और उनसे जो बन पड़ा, वह हम पर नियंत्रण करने की कोशिश करते रहे लेकिन पत्रकारिता के हमारे पुरोधाओं ने उनकी परवाह किए बिना ‘ठोंकते’ रहे और वे बेबस रह गए। आज ऐसा क्या हुआ कि हम संविधान में उल्लेखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बावजूद बेबस हैं? सवाल यह नहीं है कि हमें अभिव्यक्ति की आजादी है कि नहीं। सवाल यह है कि हमने अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वच्छंदता मान लिया और उसका बेजा उपयोग करने लगे। जब स्वतंत्रता का अर्थ बदल कर स्वछंदता हो जाए तो यह स्थिति आनी ही है। भारत में हिन्दी पत्रकारिता का