मनोज कुमार ज्यादतर लोग भूल गए हैं कि 10 मई है। 10 मई मतलब वैश्विक तौर पर मनाया जाने वाला ‘मदर्स डे’। ‘मदर्स डे’ मतलब बाजार का डे। इस बार यह डे, ड्राय डे जैसा होगा। बाजार बंद हैं। मॉल बंद है। लोग घरों में कैद हैं तो भला किसका और कौन सा ‘मदर्स डे’। अरे वही वाला मदर्स डे जब चहकती-फुदकती बिटिया अम्मां से नहीं, मम्मी से गले लगकर कहती थी वो, लव यू ममा... ममा तो देखों मैं आपके लिए क्या गिफ्ट लायी हूं... इस बार ये सब कुछ नहीं हो पाएगा। इस बार मम्मी, मम्मा नहीं बल्कि मां और अम्मां ही याद आएगी। ‘मदर्स डे’ सेलिब्रेट करने वाले बच्चों को इस बार अम्मां के हाथों की बनी खीर पूड़ी से ही संतोष करना पड़ेगा। मम्मा के लिए गिफ्ट लाने वाले बच्चे अब अम्मां कहकर उसके आगे पीछे रसोई घर में घूूमेंगे। बच्चों से ज्यादा इस बार बाजार को अम्मां याद दिलाएगी। मां के लाड़ को, उसके दुलार को वस्तु बना दिया था बाजार ने। यह घर वापसी का दौर है। रिशतों को जानने और समझने का दौर है। कोरोना के चलते संकट बड़ा है लेकिन उसने घर वापसी के रास्ते बना दिए हैं। ‘मदर्स डे’ तो मॉल में बंद रह गया लेकिन किचन से अपनी साड़ी के पल्लू स...
हिन्दी पत्रकारिता पर एकाग्र, शोध एवं अध्ययन का मंच