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जून 24, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
लीडरशीप की नयी परिभाषा गढ़ती ग्रामीण महिलाएं मनोज कुमार ध्यप्रदेश में पंचायतीराज के डेढ़ दशक बाद महिला लीडर अब पूरी तरह से चुनौतियों का सामना करने के लिये तैयार दिख रही है। अनेक किस्म की दिक्कतों के बीच वे अपने लिये राह बना रही हैं। सत्ता पाने के बाद उन्हें सरूर (सत्ता का नशा) नहीं हुआ बल्कि सत्ता से वे सत (सच) का रास्ता बना रही हैं। यह स्थिति राज्य के दूरदराज झाबुआ से लेकर मंडला तक के ग्राम म पंचायतों में है तो राजधानी भोपाल के आसपास स्थित गांवों की महिला लीडरों का काम अद्भुत है। ये महिलाएं कभी चुनौतियों को देखकर घबरा जाती थीं तो अब चुनौतियों का सामना करने के लिये ये तैयार दिख रही हैं। पंचायतीराज का पूरा का पूरा परिदृश्य बदला बदला दिखायी देने लगा है। कभी गांवों में महिलाओं के नाम पर पुरूषों की सत्ता हुआ करती थी और परिवार वालों का दखल था, अब वहां सिर्फ और सिर्फ महिलाआंे का राज है। वे चुनी जाती हैं, राज करती हैं और समस्याआंे से जूझती हुई गांव के विकास का रास्ता तय करती हैं। किरण बाई आदिवासी महिला है। वह तेंदूखेड़ा में रहती है। इस बार के चुनाव में वह बाबई चिचली जनपद की अध्यक्ष चुनी गयीं।